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व्यवस्था ही अब लंगड़ी!

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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चोरों की करते शिकायत जिनसे,
वे खुद भी चोरों से मिले हुए हैं
माजरा समझ में आने लगा है कि,
चोरों के चेहरे क्यों खिले हुए हैं ?

शिकायत जो करते हैं वे सच कहते हैं,
पर शिकायत सुनने वाले कहाँ सुनते हैं ?
जिनकी की है शिकायत दुखियारे ने,
उनका झूठ भी सच जैसा ही सुनते हैं।

शिकायत करें तो करें पर कहाँ करें ?
शिकायत सुनने वाला ही कोई नहीं
यहाँ तो ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’,
कौन है ऐसा, जिसकी आत्मा सोई नहीं?

क्या सही है ? सब जानते हैं सच सारा,
देख कर भी सब अनदेखा-सा करते हैं
कानों सुन कर भी अनसुना-सा करना,
सच्चे लोग तभी तो आत्महत्या से मरते हैं।

अंधा हुआ है हर आदमी आजकल क्या ?
क्या बहरा हुआ हर छोटा-बड़ा कान है ?
पैसा और पहुंच है जिनके पास माकूल तो,
उनके लिए न कोई कानून, न ही विधान है।

न्याय दिलाना है तो जीते जी ही दिलाओ,
मरने के बाद की संवेदनाएं तो मंजूर नहीं
गुनहगारों को बचाना बेकसूरों को फंसाना,
यह तो न्याय व्यवस्था का कोई दस्तूर नहीं।

प्राधिकरण के पाँव में मोच है आई क्या,
या फिर व्यवस्था ही हुई अब लंगड़ी है ?
वे सुनते क्यों नहीं सच्चे-पक्के लोगों की,
मजबूरी है, या फिर सोच ही इनकी संगड़ी है॥