सौ. निशा बुधे झा ‘निशामन’
जयपुर (राजस्थान)
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मंज़िल पर पहुंचे हम इस कदर,
ये हसीन मंजर देखते हैं
उसके जहां को कुछ,
इस कदर देखते हैं।
पत्थरों से प्यार करते हैं,
जिगर पर ‘वो’ वार करते हैं
मंज़िलें भी जिद्दी करती है,
राहगीर जब राहों पर निगाह रखते हैं।
मुसाफिरों-सा आता है आदमी,
ज़िंदगी में कुछ नया रास्ता बनाने।
मंजिल तक पहुंच जाऊँगा, मैं
ये मैं नहीं,
मेरा परवरदिगार कहता है॥