पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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अब हम पचपन पार हो गए हैं
इसलिए चिंतित और परेशान हैं
माथे पर लकीरें बन गईं हैं,
मन ही मन परेशान से रहते हैं
लेकिन चेहरे पर मुखौटा,
लगाकर मुस्कुरा रहे हैं।
बच्चों के करियर की चिंता,
उनकी नौकरी की चिंता
नौकरी है तो लोन की चिंता,
ई.एम.आई. की गाड़ी की…
फ्लैट की, बॉस को खुश करने की,
पत्नी की फरमाइशों की
बच्चों के ऊँचे ख्वाबों,
को पूरा करने के लिए
हम सब परेशान हैं।
आँखों की चमक अब,
मद्धिम पड़ने लगी है
हर साल चश्मे का,
नम्बर बढ़ जाता है
बालों में चाँदनी छिटक पड़ी है,
उनको छिपाने के लिए रंग
लगाना पड़ता है
हेल्थ टेस्ट की भी,
डेट फिक्स करनी पड़ती है।
पहले प्रेम पत्र लिखते थे,
अब बीमा फॉर्म भरते हैं
पहले यूँ ही खिलखिलाया करते थे,
अब जबर्दस्ती हँसने के लिए लॉफ्टर क्लब जाने की जरूरत महसूस होती है।
पेट बाहर निकल रहा है,
इसलिए सेहत के लिए
जिम जरूरी हो गया है
कुछ भी खाने के पहले,
दस बार सोचना पड़ता है
रसगुल्ला और समोसा,
खाते ही मन में कैलोरी
काउंट शुरू हो जाता है
और फिर जिम जाकर,
अधिक पसीना बहाना पड़ता है
परंतु हम परेशान होकर भी खुश हैं,
क्योंकि दिन-रात की
भागमभाग में इतने व्यस्त हैं
कि सोचने के लिए,
फुर्सत निकालनी पड़ती है।
लेकिन सच तो यह है,
कि हम थोड़ा-थोड़ा परेशान हैं॥