सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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दीप धर आलोक का फिर,
सुमन अर्पित,मंद लय है
फिर विकल मेरा हृदय है।
क्यों हुए हम विलग तुमसे ?
याद कर नम ये नयन है
फिर विकल मेरा हृदय है।
टूटता दर्पण दिखा कर,
सोचता कोई बहुत है
फिर विकल मेरा हृदय है।
गगन के उस पार है क्या ?
जानने आकुल ये मन है
फिर विकल मेरा हृदय है।
मानस में स्मृति बन रहते,
आज अंतस् में चुभन है
फिर विकल मेरा हृदय है॥