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अपना घर

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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अपने आधे से अधिक सफेद हो चुके बालों को संवारती मंजरी खिड़की के पास बैठी अतीत में चली गई। उसके पिताजी कहा करते थे-“लड़की का असली घर ससुराल होता है।” उसके बाद पति कहा करते थे-“तुम्हारा ही नहीं, यह हम सबका घर है”, लेकिन अकस्मात एक दिन पति भगवान को प्यारे हो गए। पति के सामने लाड़-लड़ाती सासू माँ अब कहने लगी,-” कैसा तेरा घर ? तू क्या दहेज में लाई थी ?”
क्या अब मेरा कोई घर नहीं…? मंजरी सोचती रहती। रात-दिन अब क्लेश रहने लगा। घर में उसके साथ नौकरानी से बदतर व्यवहार, सास-ननद के तानों से उत्पीड़ित मंजरी बीमार रहने लगी। बीमारी का दंश झेलती माँ मंजरी को, बेटी मनीषा अपने साथ अपने घर ले आई। ठीक होने के कुछ दिन बाद मंजरी अपने घर जाने की जिद करने लगी। वह कहती,-“लड़की के घर ज्यादा दिन ठहरना सही नहीं। समाज क्या कहेगा ?”
तभी समीर, मनीषा के पति ने कमरे में प्रवेश किया और बोले,-“कहीं जाने की जरूरत नहीं है। वहाँ आपके साथ कोई भी अच्छा व्यवहार नहीं करता है। ये घर आपके पति ने मनीषा को गिफ्ट में दिया था। मैंने इसकी रजिस्ट्री आपके नाम करा दी है। ये ही अब आपका घर है। आप कहें तो हम आपके साथ रह लें।”
मंजरी की आँखें छलछला उठीं।

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।