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दिल… जब निचोड़ा जाता होगा

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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दिल का सारा दर्द जब निचोड़ा जाता होगा,
क्या कागज़ भी दर्द से तड़प उठता होगा ?

शिकायतों का पुलिंदा जब धरा जाता होगा,
दिल सिकुड़ के कितना दब जाता होगा ?

वफा-ए-मोहब्बत का तराना छेड़ा जाता होगा,
क्या नाजुक-सा दिल धक-धक धड़कता होगा ?

आखिर कितने ग़म रोज़ ही सहता होगा,
फूल-सा कोमल दिल कितना बिखरता होगा ?

बेदर्द जमाने के रिवाजों से जब टकराता होगा,
क्या दिल भी ग़म के नौ-नौ अश्रु बहाता होगा ?

भावनाओं का समंदर रूपी दिल जब सौ-सौ दफा टूटता होगा,
इतने सारे जोड़ से दिल पत्थर नहीं बन जाता होगा ?

आखिर कभी तो जीने की चाह खत्म हो जाती होगी,
क्या दिल फिर एक जन्म में कई दफा मर जाता होगा…?