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हम सभ्य हो रहे हैं…

ऋचा गिरि
दिल्ली
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हम सभ्य हो रहे हैं, पहले से कहीं और अधिक।


हमारे अंदर जितनी अधिक सभ्यता
उतनी ही संवेदनहीनता,
और जितनी संवेदनहीनता
उतनी ही व्यावसायिकता।

यह हमारे विकास के लिए जरूरी है…
वाकई ?