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इस्लाम का भी दुश्मन है पाकिस्तान

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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आतंक, विनाश और ज़िंदगी (पहलगाम हमला विशेष)…

पहलगाम आतंकी हमला कई प्रश्न खड़े करता है… आतंक का नया प्रयोग, सैलानी जो भूल चुके थे, कि काश्मीर आतंक का गढ़ रहा है, वहाँ जाना खतरे से खाली नहीं है। आतंकियों ने समझ-बूझ कर पर्यटकों को निशाना बनाया, ताकि शांति प्रक्रिया और प्रगति के प्रयासों को आसानी से रोका जा सके। चुनाव में काश्मीर की जनता की उत्साहपूर्ण भागीदारी को देख पाकिस्तान समर्थक आतंकी समूह जो आम कश्मीरी को अपने हाथ का खिलौना समझते रहे हैं, वह काश्मीरी उनकी आकांक्षाओं और उम्मीदों की नुमाइंदगी नहीं करते। इसी लिए लोकप्रिय पर्यटन स्थल पर हुआ हमला बताता है, कि आतंकी गैर कश्मीरी लोगों पर हमला करके कश्मीर में पनप रही शांति और भाईचारे की संस्कृति को तहस-नहस करना चाहते थे।

इस हमले की दूसरी सबसे बड़ी चिंताजनक बात है आतंक का धार्मिकीकरण। आतंकियों ने लोगों से उनके नाम पूछे, यहाँ तक कि गोली मारने के पहले कलमा पढ़ने को कहा। इस रणनीति के मूल में सांप्रदायिकता का जहर छिपा हुआ है।
आतंकी देश में पहले से पनप रहे सांप्रदायिक वातावरण को और ज्यादा कटुतापूर्ण बनाना चाहते थे, ताकि देश और विशेष रूप से कश्मीर पूरी तरह से हिंदू मुसलमान २ खेमे में बँट जाए एवं एक-दूसरे के साथ समझौता न हो सके, साथ ही दुश्मन की नजरों से देख कर आपस में लड़ाई करना शुरू कर दें, भाईचारा समाप्त हो जाए, यह मुख्य उद्देश्य था।
हमलावर अच्छी तरह से जानते थे कि पर्यटक तस्वीर और वीडियो बना रहे होंगें। जब वह लोग निहत्थे लोगों पर गोली चलाएंगें तब उनकी वहशियाना हरकत कई लोगों के कैमरे और फोन में कैद होकर तुरंत हर जगह प्रसारित हो जाएगी। मरने वालों के संबंधी और वहाँ मौजूद लोग इस नरसंहार की तस्वीर और वीडियो बनाएंगें। इस तरह आतंकी अपने मकसद में पूरी तरह से कामयाब रहे। कई भयावह चित्र और वीडियो न्यूज चैनल पर प्रसारित हुए। घटना के इस व्यापक प्रचार-प्रसार ने आतंकी हमले को केवल कश्मीर तक नहीं सीमित रखा, वरन् उसको विश्व के साथ पूरे देश ने देखा।
इस धार्मिक और सांप्रदायिक उन्माद से सबसे बड़ा नुकसान उन कश्मीरियों का हुआ, जो पर्यटकों को बचाने की कोशिश कर रहे थे, या जो आतंकवाद के विरुद्ध मुखर होकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे। मौत के इस तांडव के कारण उनका रोजगार खत्म हुआ, साख गिर गई और उनकी धार्मिक क्षेत्रीय पहचान अब शक के दायरे में आ गई है।
इस हमले से पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर का एक सप्ताह पहले दिया हुआ भाषण बेहद प्रासंगिक हो गया है। सेना प्रमुख ने द्वि-राष्ट्रवाद के नारे को दुबारा बुलंद करते हुए प्रण किया कि पाकिस्तान कश्मीर में जारी भारत विरोधी गतिविधियों को पूरा समर्थन देता रहेगा। मुनीर ने एक खास तरह के इस्लाम की दुहाई दी-एक ऐसा इस्लाम, जिसमें विधर्मियों की सजा मौत हो और जिसके जरिए आतंकवादी हिंसा को सही ठहराया जा सके। मुनीर का भाषण संकेत करता है, कि पहलगाम हमला इस्लाम की इस बेहद सतही, विरोधाभासी, गैर रुहानी और अलोकतांत्रिक समझ से प्रेरित है।
प्रश्न यह है, कि इस हमले का सही जवाब कैसा होना चाहिए ? यह तो सुरक्षा एजेंसी तय करेंगी। वे इसकी पूरी जाँच-पड़ताल करेंगी, लेकिन हम लोग इतना तो अच्छी तरह समझ सकते हैं कि हमले का उद्देश्य केवल कश्मीर की प्रगति और शांति को नष्ट करना है। पाकिस्तान और उसकी शह पर पनप रहे आतंकी संगठन चाहते हैं कि भारत में सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो, उन्माद बढ़े और सब कुछ हिंदू-मुसलमान में बँट कर एक-दूसरे के दुश्मन बन जाएँ।
इस हमले ने बता दिया है, कि पाकिस्तान भारत की शांति, स्थिरता और प्रगति को रोकना चाहता है। यह समझने की जरूरत है कि पाकिस्तान इस्लाम का हितैषी नहीं, वरन् सबसे बड़ा दुश्मन है।