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श्रमेव जयते

गोवर्धन थपलियाल
नई दिल्ली
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श्रम आराधना विशेष…

सूरज आक्रोशित हो आग बरसाता जाता है,
घाम की तीव्रता चढ़ रही जन-जन प्यासा है।

इस भीषण गर्मी में मानव जूझता रहता है,
सुबह-सबेरे से दिन ढले कृषि श्रम करता है।

तपती दोपहरी में मजदूर मजदूरी करता है,
इस ज्वाला में कभी दिल नहीं पिघलता है।

अजगर चाकरी करता है पंछी भी उडता है,
जवान सीमा पर हिम आतप सब सहता है।

हर तापमान में मानव संघर्ष करता रहता है,
राष्ट्र विकास में ‘श्रमेव जयते’ पहले आता है॥