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मुफ्त के ज्ञान की बाढ़

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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मुफ्त के ज्ञान और इन ज्ञानियों ने हर एक तरफ़ माहौल-सा बना कर रखा हुआ है, क्योंकि मुफ़्त के चंदन का अपना अलग मजा होता है। कहीं भी चले जाएँ, हमें अतिरिक्त होशियार-समझदार सज्जन मिल ही जाते हैं। हमारे शहर में भैय्या पोहे के साथ ऊपर से अलग से प्याज़ व सेंव नमकीन डालने के लिए बोलना। दही बड़े में अतिरिक्त दही व चटनी डलवाना, होटल में खाना खाने जाएँ तो मुफ़्त नींबू व प्याज़ के लिए बार-बार वबोलना। पानीपुरी में अलग से आखिरी में आलू व नमक लगा पताशा मांगना… यह आदत-सी बन गई है हम सभी की, जो नहीं जाती है। हर जगह से कुछ-न-कुछ मुफ़्त का निकलवाने का आनंद नहीं, परम आनन्द है।
इस विधा का संचार हमारी रोजमर्रा की दिनचर्या में शामिल हो चुका है। कुछ लोग इतना बोलते हैं, कि हर जगह बस मस्त होकर बड़बड़ाते रहते हैं। कुछ भी विषय हो, उनका खजाना हमेशा भरा रहता है। लोग चाहे बाग-बगीचे में हों या फिर चाय के ठिए में, वहाँ ज्ञानी से ज्ञानी मिल ही जाते हैं। जैसे-सुबह सुबह की सैर करते समय चम्पक भैया मिल गए, उनके मित्रों की टोली के साथ देश- विदेश का चिंतन, वह भी बाबाजी की योग क्रिया के साथ ॐ-विलोम के परिदृश्य को समझाते हुए करते हैं। अरे दिनेश जी, अब तो कुछ न कुछ करना होगा। रोज़-रोज़ की इन दुश्मनों की गीदड़भभकी से परेशान हैं सब। कब तक इनके आलाप में हम सुर लगाते रहेंगे। हाँ चम्पक भैया, स्थिति बहुत बिगड़ी हुई है। जरा-सी ढील दो तो वह नापाक हरकत करते हैं। हाँ-हाँ, सही बात है। चलो चम्पक भैया, अब चलते हैं, ज्यादा समय हो गया, आफिस जल्दी जाना है। हाँ ओके भैय्या।
पास में चाय के ठिए में भी एक कट चाय पीते हुए कुछ और दोस्तों का जमावड़ा लगा, तो वही सुर से सुर मिल रहे होते हैं-आज तो फिर शेयर बाजार नीचे आ गया। हाँ, पर २-३ दिन में ठीक हो जाएगा। हालते दर बयां क्या करें दोस्तों, सबके सब यहाँ बहुत ज्ञानी हैं।
हमारे यहाँ हर जगह मुफ्त के ज्ञान के पिटारों की भरमार है। जहाँ भी चले जाओ, वहीं का प्रसाद आपके लिए हाजिर हो जाता है। ऑटो रिक्शा हो या बस और या फिर ट्रेन, समय बिताने के बहुत स्थान हैं, और लोगों के पास बहुत समय है। उन्हें इंतजार भी रहता है गपशप करने वालों का, जो उनसे इस सफ़र में समय व्यतीत कर सकें। जैसे-एक ऑटो रिक्शा वाला सवारी से कहता है, “अरे बाबू जी, आजकल लोग सड़क को अपनी मिल्कियत समझते हैं। ऐसी गाड़ी चला रहे हैं जैसे बगीचे में घूम रहे हों। ऐसा लगता है जैसे यह रोड इन्हीं के लिए बनीं है।” वहीं बसों में आगे आगे बैठी लड़कियाँ बातें करती हैं- “अरे क्या फिल्म थी, मुझे तो बहुत अच्छी लगी।”
दूसरी लड़की बोली,-“नए लुक में हीरो तो कमाल लग रहा था।”
एक सहेली बोलती है,-“गाने के कारण यह फिल्म हिट है।”
अब देखिए ट्रेन में यही सब… एक स्टेशन पर रेलगाड़ी रुकी तो चाय- नाश्ते वाले लोगों की आवाज आ रही थी। इसे देखते हुए अंदर बैठे एक सज्जन बोले,-“अरे ये सब बेकार है। समोसे में तो न नमक- मिर्ची, न मसाला सिर्फ आलू-आलू रहता है। इसे नहीं लेना चाहिए।”
मुसाफिरों का यह सफर ऐसे ही चलता है। कभी-कभी अपने घर में भी बात का बतंगड़ बन जाया करता है, तो वहाँ भी ज्ञान की पोटली खुल जाती है। एक बार मुझे हाथ में लग गई और थोड़ी मोच भी आ गई थी, तो पिता जी बोले,-“इसे बर्फ़ से सेंक लो” तो दूसरी तरफ मौसी बोली,-“अरे नहीं, इसे अजामाईन की सिकाई करो।” मम्मी बोली,-“अरे बेटा, तू हरा मल्लम लगा ले, इससे चोट व सूजन बहुत जल्दी अच्छी हो जाएगी।”

कभी-कभी सोचता हूँ कि लोग न जाने कितने दिनों से फुर्सतिया पल ढूंढते रहते हैं, जब वह अपना मुफ्त का ज्ञान बंटेंगे। जो मुफ्त का ज्ञान बांटते हैं, उनकी क़ीमत नहीं होती। ऐसे तो इसका शुल्क लगना चाहिए, तभी वज़न बढ़ेगा बातों का या कहें जबरन ज्ञान पेलना हर समय तो गलत है। हम तो यही कहते हैं कि फुर्सत के पल होना ही नहीं चहिए। तभी इन मुफ़्त का ज्ञान बांटने वालों से आजादी मिलेगी, क्योंकि समय व्यतीत करने वाले रेलम-पेल करते हैं। इस पर काका हाथरसी जी कहते हैं, “अजगर करे न चाकरी, पंछी करें न काम, चाचा मेरे कह गए कर बेटा आराम।” इन आराम व मुफ़्त के पलों में सज्जन बहुत ज्यादा चार्ज रहते हैं, क्योंकि इनकी बैटरी पूरी चार्ज रहती हैं। तभी तो थके- हारे परेशान लोगों को वह अपनी फिजूल की बातों से मुफ़्त के चक्कर में उलझाते रहते हैं। यही इनका काम है। इसी लिए तो हर जगह मुफ़्त का ज्ञान देने वालों की जमात बढ़ती जा रही है।