लोकार्पण…
भोपाल (मप्र)।
आजकल व्यंग्य लिखना खतरे से खाली नहीं है, लेकिन शारदा दयाल श्रीवास्तव ने सामयिक और शाश्वत विषयों पर व्यंग्य और हास्य का अद्भुत मिश्रण किया है, जो इनकी पुस्तक को अनोखा बनाता है।
यह बात मुख्य अतिथि से.नि. गृह सचिव (मप्र शासन) ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने कही। अवसर रहा शारदा दयाल श्रीवास्तव के व्यंग्य संग्रह ‘ज्ञानगंगा में गधों का आचमन’ के लोकार्पण का, जो दुष्यंत संग्रहालय में डॉ. साधना बलवटे की अध्यक्षता में हुआ। सारस्वत अतिथि सुरेश पटवा (संयुक्त सचिव, दुष्यंत संग्रहालय) और विशिष्ट अतिथि मंगत राम गुप्ता, गोकुल सोनी व विवेक रंजन श्रीवास्तव रहे। श्री पटवा ने सर्वप्रथम श्री श्रीवास्तव के लेखकीय व्यक्तित्व का परिचय देते हुए कहा कि शारदा दयाल ऊपर से शांत दिखते हैं, लेकिन ज्वालामुखी छुपाए हैं। तभी इनके भीतर से विसंगतियों के विरुद्ध तीखी प्रतिक्रिया निकलती है। लेखक ने संदर्भित व्यंग्य संग्रह की रचना प्रक्रिया के अनुभव साझा करते हुए ‘मेरा देश मेरा भेष’ व्यंग्य का पाठ अनोखे अंदाज़ में किया।
डॉ. बलवटे ने कहा कि इस व्यंग्य संग्रह में सामयिक नहीं, अपितु वैश्विक परिस्थितियों पर शाश्वत व्यंग्य शामिल हैं। आजकल व्यंग्य में बोथरापन-भटकाव अधिक नज़र आता है। इन्होंने अपने व्यंग्य में व्यंजना के माध्यम से साहित्य को ज़िंदा रखा है। इन्होंने पहली कृति में ही छक्का मारा है। गोकुल सोनी ने कहा कि व्यंग्य समाज की विसंगत एवं रुग्ण मानसिकता के लिए ‘शुगर कोटेड’ कड़वी दवाई की तरह है। श्री श्रीवास्तव के व्यंग्य में पर्याप्त पैनापन है, जो पाठक को चमत्कृत करता है। विवेक रंजन श्रीवास्तव ने कहा, कि शारदा दयाल श्रीवास्तव का लेखन उनके सरल, विद्रोही और अनुभवी व्यक्तित्व का ऐसा दर्पण है, जो पाठकों से सीधा संवाद स्थापित करता है। मंगत राम गुप्ता ने शारदा दयाल श्रीवास्तव के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इनके शान्त व्यक्तित्व में एक चिंतनशील बेचैन व्यक्ति छुपा है। प्रारम्भ में सरस्वती वंदना सुनीता शर्मा ने प्रस्तुत की। सरस संचालन श्रीमती जया केतकी शर्मा ने किया।