सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
*********************************
सहनशीलता की एक सीमा, तय करनी होगी,
नंगो को मिल रही छूट अब, नहीं सहनी होगी
भीरू से मर्दानगी की, उम्मीद नहीं करते,
अब निर्दोषों को अग्नि परीक्षा, नहीं देनी होगी।
आँखें सूरज, चाल शेर की, अब करनी होगी,
संभा जैसी हिम्मत कर, हुंकार भरनी होगी
हे भारत के जांबाजों, राणा के वंशज हो तुम,
आगे बढ़ कर दुश्मनों की, चीर-फाड़ करनी होगी।
सागर-सा उबाल लहू में, फिर भरना होगा,
आक्रोश से मुट्ठी बाँहों की, अब कसना होगा।
ललकारा नामर्दों ने, उनका समूल नष्ट करने,
जय हिंद के नाद से उन पर, टूट पड़ना होगा।
राक्षसी कौम के घातक धोखे, से बचना होगा,
कथनी करनी में है अंतर, ध्यान रखना होगा
नेकी भूल, निर्मम दुश्मनों की, बेहयाई तक कर,
साम दाम और दंड भेद कर, वार करना होगा।
दर्ज नाम इतिहास में तुमको, अब करना होगा,
शीत युद्ध कर भारत का, नक्शा बदलना होगा।
नए भारत के नए स्वप्न, नई आँखों में भर कर,
शौर्य और समृद्धि के सिंहासन, पर चढ़ना होगा॥