मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)
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लगता है किसी न किसी की दुआओं का असर है,
जो मेरी ज़िंदगी में खुशियों का बसर है
तभी तो गमों की हवाओं का जोर बेअसर है,
यूँ दुआओं संग बढ़ रहा यह खूबसूरत-सा सफ़र है।
न कमाई है दौलत हीरे-जवाहरात-सी,
बहुत बुलंद है फिर भी तकदीर मेरी
ढेरों अपनेपन के संग गुजर रही जो ये ज़िंदगी,
यही कमाई है मेरी दिन-रात की।
न रूबरू हुई जिनसे कभी मैं,
वे लोग भी खूबसूरत एहसास कराते है वहीं से
ऐसे लोग भी मिलते हैं तकदीर से,
इससे ज्यादा मेरी और कुछ कमाई नहीं।
क्या लेकर आए हैं और क्या लेकर जाएंगे ?
यहाँ का कमाया यहीं छोड़कर जाएंगे।
बस एहसासों की पोटली अपने साथ ले जाएंगे,
लोगों के दिलों में एक अपनी छाप छोड़ जाएंगे॥