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हे हरि! तुम आना प्रीत निभाने

सरोज प्रजापति ‘सरोज’
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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हे हरि !
बहुत दिनों से बैचैन
तुम्हारी बाट जोह रही हूँ,
जैसे शबरी की तड़पती आशा
जैसे विदुर की गहन प्रत्याशा।

हे हरि!
तुम मेरे सपनों में आना,
तुम आना अवश्य, मेरे मन मंदिर में समा
कब से अखियाँ… दर्श दिखाना,
जी-भर देखूं ! तुम्हें टुकुर-टुकुर, ये ठाना।

हे प्रभु हे ! मेरे प्रियतम,
तुम वैसे ही आना, जैसे द्रोपदी की लाज बचाने
तुम वैसे ही आना,
जैसे मीरा की मर्यादा निभाने।

हे प्रिय!
चिर मीमांसा, मेरी कुछ उस कदर,
घोर अंधियारे में दिव्य पुंज उस कदर
अनुरक्त रसिक बन,
मोह पाश में बंधा प्रेम लौटाने
तुम आना।

और फिर,
चले जाना जैसे धनघोर घटाओं में छिप…
रैन भरी बरसात, तुम सत्य प्रकाश में छिप,
ढूंढ फिरूं तुम्हें मीरा बन गली-गली
आभास जब आँख खुले संकोच, गली-गली,
मन हर्षाए पखेरू बन रैन-दिवस,
वैसे जाना।

हे प्रभु,
इस तरह जन्म-जन्म का तुम्हारा मेरा
मधुर मिलन-संयोग, सिक्ता-सेतु हो।
जैसा फूल और भंवर का,
भंवर की नैया पार हो, न विरत
जन्म सफल हो॥

परिचय-सरोज कुमारी लेखन संसार में सरोज प्रजापति ‘सरोज’ नाम से जानी जाती हैं। २० सितम्बर (१९८०) को हिमाचल प्रदेश में जन्मीं और वर्तमान में स्थाई निवास जिला मण्डी (हिमाचल प्रदेश) है। इनको हिन्दी भाषा का ज्ञान है। लेखन विधा-पद्य-गद्य है। परास्नातक तक शिक्षित व नौकरी करती हैं। ‘सरोज’ के पसंदीदा हिन्दी लेखक- मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा हैं। जीवन लक्ष्य-लेखन ही है।