अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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चुन-चुनकर लेंगे बदला, ये भारत का ‘सिंदूर’ है।
बहुत सह लिया तुझे, तोड़ना तेरा अब गुरूर है॥
भक्ति देखी, शांति देखी, अब देखेगा तू क्रांति भी।
मजबूर किया है युद्ध को, तोड़ेंगे अब हर भ्रान्ति भी।
काँपेगा हर दुश्मन, जो मगरूर है,
चुन-चुनकर लेंगे बदला…॥
उग्र है सेना, प्रचंड-अखंड भाव है,
हर सैनिक के चेहरे पर ताव है।
अरे कैसे, हमें कायर समझ लिया,
अब बात नहीं, हमने है प्रण लिया।
लेंगे हर बदला, यही तो नूर है,
चुन-चुनकर लेंगे बदला…॥
ये कैसा बदला, सिंदूर मिटाया तूने,
निर्दोषों को मारा, की है हत्या तूने।
बार-बार समझाया, बात समझ नहीं पाया,
इस अच्छाई को तूने फिर भुलाया।
रोएगा तू तो, विजय नहीं अब दूर है,
चुन-चुनकर लेंगे बदला…॥