डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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अधजल गगरी छलकत जाय प्रणय,
मिलन की आस में जीवन की रवानी।
कागज की कश्ती बारिश का पानी,
वो यादें बचपन की सुहानी।
सुनाती जब नानी और दादी कहानी,
आ जाती फिर निंदिया सुहानी।
मौज-मस्ती के हिचकोले रंगीन यादें,
वो नाव कागज की पानी में चलानी।
सुंदरता बचपन की गुदगुदाती बातें,
उछल-कूद के संग भीगे मुन्नू रानी॥
