दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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तन्हाई से दोस्ती कर ली हमने,
रिश्तों ने बहुत रुलाया है
अपनों की गलियाँ छोड़कर,
वीराने में आशियाना बनाया है।
तन्हाई से दोस्ती कर ली हमने…
अंधेरों से दोस्ती कर ली हमने,
उजाले अब नहीं भाते हैं
उजाले में देखा बेनकाब होते रिश्तों को,
अंधेरों ने दिल पर मरहम लगाया है।
तन्हाई से दोस्ती कर ली हमने…
खामोशी को अपना बना लिया हमराज,
दिल पर पोशीदगी का साया है।
जबसे अपनों के साथ भी,
खुद को अकेला पाया है।
तन्हाई से दोस्ती कर ली हमने…
रिश्तों ने बहुत रुलाया है॥