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बिखरे रिश्ते

संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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कहाँ गया रिश्तों से प्रेम ?

बिखरे हुए रिश्तों को,
समटने की कोशिश में
कैसे समेटा जाए,
सोचता हूँ हर बार
हार जाता हूँ कई बार….।

शायद प्रयास मेरे सही नहीं!
या मेरे पास वो नहीं
जिससे कि मुझे मिले,
वह हौसला कि
बाँट सकूँ प्यार और
समेट लूँ बिखरे हुए रिश्ते,
फिर से एक बार…।

बने-बनाए रिश्तों को,
बनाए रखना चाहता हूँ…
बुने थे जो बंद ज़िंदगी में,
बुनना चाहता हूँ
फिर से एक बार…।

गाए थे कभी,
गीत प्यार के
वो गीत-सुर के साथ,
गाना चाहता हूँ…
फिर से एक बार…।

आया था इस जहाँ में,
अकेला ही पर जाते वक़्त।
सबका होकर जाना चाहता हूँ…,
फिर से एक बार…॥