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कभी-कभी…करना जरूर

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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कभी हृदय में किसी के प्रति
कोई भाव उठे तो व्यक्त ज़रूर करना,
मन हो आतुर कहने को तो कह ज़रूर देना
उचित समय आने का इन्तज़ार मत करना।

जब पिता से पाई हुई कोई सीख या वस्तु मन को छू जाए तो उनसे लिपट कर प्यार ज़रूर दिखाना,
मन में उठी भावनाओं को उसी समय व्यक्त करना
बाद के लिए मत छोड़ना।

माँ किसी दिन बिन बताए आपके मनपसंद खाना बनाए,
बड़े प्यार से परस कर आपके लिए ले आए तो आभार ज़रूर व्यक्त करना,
न संकोच करना, उसके हाथ ज़रूर चूमना।

जब घर के कामों में व्यस्त पत्नी अपने को भुला कर घर को सजाने-सँवारने में लगी हो,
उसे गले लगा कहना ज़रूर कि बड़ी खूबसूरत लग रही हो,
उचित समय आने की प्रतीक्षा मत करना।

पति जब ऑफ़िस से थका-मादा घर आए तो मुस्कुरा कर सुकून से कुछ पल उसके साथ बिताना ज़रूर,
आते ही अपनी समस्याओं को मत ले बैठना,
ध्यान इस बात का पूरा रखना ज़रूर।

कभी-कभी बच्चों के साथ बच्चे बन कर खेलना ज़रूर,
उन्हें यह अनुभव करवाना कि आप बच्चों के क़रीब हैं, उनसे दूर नहीं,
उन्हें प्यार-दुलार दे भरोसा दिलाना कि आप उनके साथ हैं।

नहीं भरोसा किसी का साथ कब छूट जाए!
कोई अपना हमसे कब रूठ जाए। उससे पहले दिल की बात उस तक पहुँचाना जरूर,
यह बात याद रखना॥