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कुदरत का कहर तो बरपेगा

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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उजड़ रही है देखो बस्तियाँ आज,
उजड़ रहे हैं सब खेत-खलियान
वह दिन भी शायद दूर नहीं अब,
जब बन जाएगी धरती ही श्मशान।

न कार रहेगी, न कोठियाँ तब,
न घर रहेंगे और न ही तो मकान
नदी-नालों में बहती लाशें दिखेगी,
पहाड़ बनेंगे सब सपाट मैदान।

विकास के नाम पर लूट मचाई है,
भ्रष्टाचार की अब खुल गई दुकान
जर्रा-जर्रा कुदरत का ताण्डव करेगा,
क्या तब समझेगा ये पागल इंसान ?

हाँ, बात और भी काम की है एक,
बताना जरूरी सनातन वो विधान
नए दौर के नए लोगों में बिल्कुल भी,
दिखता न जिसका है नामो-निशान।

देवी पूजी न देवता, साधु-सन्त माना न,
वाहे गुरु न गॉड, खुदा न ही तो भगवान
खनन माफिया और वन माफिया मिलकर,
कर रहे हैं अवैध खनन और अवैध कटान।

सरकारें सोई है कुंभकर्णी नींद में,
उनका न इधर है तनिक भी ध्यान
अधिकारी मिले हैं माफियाओं से,
जनता बेचारी होती है परेशान।

न्याय मांगे भी तो वह किससे मांगे ?
नीचे से ऊपर तक हैलो का घमासान
शिकायत करें तो वह भी किससे करें ?
मिलता ही नहीं कहीं कोई समाधान।

सत्ताधीश सब सत्ता में चूर, क़ानून की,
महकमे उड़ाते धज्जियाँ शहर ए आम
खुल्लम-खुल्ला लूट पड़ी है चहुँ ओर को,
मूकधर्मी जनता की भी है बन्द ज़ुबान।

कुदरत का कहर तो बरपेगा ही,
और क्या करेगा फिर भगवान ?
अभी वक्त है, सम्भल ओ लोलुप !
जरा आँखें खोल ले पागल इंसान॥