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रिश्ते सींचे कद्र भरोसा

सरोज प्रजापति ‘सरोज’
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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कहाँ गया रिश्तों से प्रेम…?…

अशक्त पड़ी रिश्तों की डोरी,
अत्यंत बेबस नाजुक डोरी
बेगानापन, ओढ़ मुखौटा,
भीतरघात, दामन भी छोटा।

आज रिश्ते चलाऊ-उबाऊ,
स्वयं-स्वयं तक न टिकाऊ ,
आधुनिक, खोखले बिकाऊ,
बना अपने, पर हैं चलाऊ।

जन्म धात्री माँ लांछित होती,
संतति बेगैरत निर्मम होती
सिमटा तन-मन चारदिवारी,
अर्थ ही अर्थ, अर्थ दरकारी।

बेइंतहा नेह, भाईचारा,
भाई भुजा, पर बांटे सारा
दौलत -बदौलत झंझट सारा,
जर-जोरू संग भूखंड प्यारा।

लोभ-मोह-मद का बिगाड़ा,
उपेक्षित रिश्ते फूटा गुब्बारा
इश्क़-मोहब्बत करे बिगाड़ा,
गर्त में धकेल जीवन सारा।

रिश्ते सींचते कद्र-भरोसा,
यातना ताड़ना न भरोसा
कुंठित, उछंग क्षण रिस छूटा,
फिर काहे नाता ? सब छूटा।

लेकर प्रतिशोध धधक ज्वाला,
कलियुग रौद्र, नियत निराला
चंद लोभ, मौत धरे निवाला,
घृणा झकझोरे, दे हवाला।

बेमौत संबंध सहलाएं,
चार दिन हठीलापन हटाएं।
दो पग चल के, अदब जताएं,
नति-नीति-नटि ‘नताई’ सहाए॥

परिचय-सरोज कुमारी लेखन संसार में सरोज प्रजापति ‘सरोज’ नाम से जानी जाती हैं। २० सितम्बर (१९८०) को हिमाचल प्रदेश में जन्मीं और वर्तमान में स्थाई निवास जिला मण्डी (हिमाचल प्रदेश) है। इनको हिन्दी भाषा का ज्ञान है। लेखन विधा-पद्य-गद्य है। परास्नातक तक शिक्षित व नौकरी करती हैं। ‘सरोज’ के पसंदीदा हिन्दी लेखक- मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा हैं। जीवन लक्ष्य-लेखन ही है।