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भाषाई शुचिता बनाए रखना साहित्यकारों का नैतिक दायित्व- डॉ. दवे

कृति विमर्श…

भोपाल (मप्र)।

भाषा सिर्फ आपस में संवाद का माध्यम ही नहीं है, बल्कि हमारी जातिय अस्मिता और राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान भी है। भाषा की शुचिता और समृद्धि बनाए रखना साहित्यकारों का नैतिक दायित्व है। हमें अपनी भाषा और बोलियों पर हमें गर्व होना चाहिए।
मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी (संस्कृति परिषद, भोपाल) के निदेशक डॉ. विकास दवे ने यह उदगार साहित्य अकादमी पुस्तकालय सभागार में पाठक मंच द्वारा आयोजित कृति केंद्रित विमर्श में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। आरम्भ में मंच संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती अनिता सक्सेना ने कार्यक्रम की रूपरेखा पर प्रकाश डाला। इसके पश्चात मंच संयोजक घनश्याम मैथिल ‘अमृत’ ने ‘थैंक यू यारा’ (कहानी संग्रह, लेखिका अमिता त्रिवेदी) के कथ्य शिल्प और भाषा पर चर्चा की। ‘मन बंजारा’ (काव्य संग्रह) पर श्रीमती शीला मिश्रा ने समीक्षकीय वक्तव्य दिया। रचनाकार द्वय ने अपनी लेखन प्रक्रिया के बारे में विचार साझा किए।
आयोजन में जिन साहित्यकारों ने सक्रिय रूप से भाग लिया, उनमें डॉ. कुमकुम गुप्ता, डॉ. मीनू पाण्डेय, शेफालिका सक्सेना, मधुलिका सक्सेना व डॉ. अनामिका पांडे रहे।
संयोजक श्रीमती सक्सेना ने सभी का आभार प्रकट किया।
🔹पूर्णतः जवाबदेही आयोजकों की
इस अवसर पर नगर की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं-साहित्यकारों की ओर से डॉ. दवे द्वारा १ प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें साहित्यकारों द्वारा अपने निजी जीवन में चरित्र की शुचिता बनाए रखने के लिए प्रस्ताव रखा गया कि साहित्य जगत के प्रत्येक आवासीय कार्यक्रम में महिला-पुरुषों की आवासीय व्यवस्था पृथक हो एवं मर्यादा की पूर्णतः जवाबदेही आयोजकों की हो।