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बाबा नागार्जुन ने जो देखा, जो भोगा… वही लिखा

पटना (बिहार)।

बाबा नागार्जुन एक जीवंत कवि थे। वह काव्य के पर्यायवाची थे। यह उनको देख कर समझा जा सकता था। संतकवि कबीर की तरह अक्खड़ और फक्कड़। नागार्जुन जो थे, वही उनकी कविता भी थी। जो देखा, जो सुना, जो भोगा, वही लिखा।
बाबा नागार्जुन की जयंती की पूर्व संध्या पर साहित्य सम्मेलन में सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने यह बातें कहीं। सम्मेलन के साहित्य मंत्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि बाबा नागार्जुन एक ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने कागज लिखी नहीं, आँखन देखी को अपनी रचनाओं का विषय बनाया। उपाध्यक्ष डॉ. उपेंद्र नाथ पाण्डेय ने कहा कि बाबा नागार्जुन एक ऋषि-तुल्य साहित्यकार थे।
इस अवसर पर कवि सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। डॉ. रत्नेश्वर सिंह, आचार्य विजय गुंजन, रितेश कुमार, प्रिंस कुमार पाण्डेय आदि उपस्थित रहे।

मंच संचालन कुमार अनुपम ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने दिया।