राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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कहाँ गया रिश्तों से प्रेम…?..
रिश्ते हो गए हैं बेमानी,
मतलब का ही प्यार रहा है
जीवनभर जो साथ निभाए,
अब न ऐसा यार रहा है।
अपने में सब रहें उलझते,
खैर खबर न सुनते, कहते
घर में जितने भी रहते पर,
मोबाइल में व्यस्त ही रहते।
मिलावटी हो गया नेह,
भावों का न सत्कार रहा है…॥
संवेदना खो गई धरा पर,
कटुताओं ने जन्म ले लिया
सहनशीलता भस्म हो गई,
समर्पण ने जहर पी लिया।
अंहकार मन में है समाया,
घर-दीवारें बांट रहा है…॥
संबंधों की बात न पूछो,
प्यार-यार नकली हैं चेहरे
होठों पर झूठी मुस्कानें,
दिल पे लगते सौ-सौ पहरे।
सिमट रही रिश्तों की दुनिया,
मानव नैतिकता भूल रहा है…॥
रिश्ते हो गए हैं बेमानी,
मतलब का ही प्यार रहा है…॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।