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हमने भारत देखा है

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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हमने अब तक भारत देखा है-
जात-पात पर लड़ते-कटते,
धर्म-सम्प्रदाय में बंटते-मिटते
प्रांतवादी-भाषावादी जहर उगलते,
नर-नारी पर रोज उलझते।

हमने अब तक भारत देखा है-
उग्रवाद-नक्सलवाद को पनपते,
सैनिक पराक्रम में परिजन को बिलखते
आज़ाद शहीदों की बात क्या वो थे देश में सस्ते,
क्या क्यों दोगे ‘भारतरत्न’ तुम ? लूट लिए गुलदस्ते।

हमने अब तक भारत देखा है-
न्याय की खातिर लड़ते-मरते,
न्याय को कफन बदलते
अन्यायी को विलासिता करते,
लूट रहे हैं नोट की गड्डी न्यायाधीश बोरा भरके।

हमने अब तक भारत देखा है-
जहाँ जन मंत्री से मिलने को हैं तरसते,
भारत में भी दिखता ब्रिटिश काल गरजते
जन-मन के ही भाव कहूँ मैं आँसू की बूँद बरसते,
अब भी लगता ऐसा क्यों है ? नहीं रहे वतन में फरिश्ते!

हमने अब तक भारत देखा है-
संयुक्त भाव से रूठते, असंयुक्त परिवार में टूटते,
नया चलन है, नई जवानी, बात-बात में खट्टे
महीनों में हो रहा तलाक, लगे ज़िंदगी में बट्टे,
माँ-बाप के रिश्ते देखो, लगे मृत्यु दण्ड के सट्टे।

हमने अब तक भारत देखा है-
दंगा फसाद प्रचंड यहाँ,
कश्मीर खण्ड-खण्ड यहाँ
समझौता अंड-बंड यहाँ,
क्या यही है देश अखंड यहाँ ?

हमने अब तक भारत देखा है-
नेहरू जी से मोदी जी तक,
तब भी गरीबी की थी दस्तक
अब भी गरीबी की है दस्तक,
लेकिन स्वयं में ऊँचा सरकार का ताज और मस्तक।

हमने अब तक भारत देखा है-
मंत्रियों के आगे-पीछे दौड़ते चाटुकार,
मंच से सुनी है प्रधानमंत्री तक की ललकार
७६ वर्ष से कुछ बदलता नहीं दिखा कहने को हूँ लाचार,
आश्वासन-वादे देना चाहता हूँ, भीड़ के पीछे वाले को खुशियाँ अपार।

हमने अब तक भारत देखा है-
कितनी आएगी-जाएगी सरकार, लेकिन भीड़ के उस आखिरी व्यक्ति के आँसू सुखा जाएगी, किसे है दरकार ?
फिर सरकार आएगी, जाएगी, डफली और ड्रम बजाएगी सरकार॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। सम्मान-पुरस्कार में आपको महात्मा बुद्ध  सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान मिले हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”