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पांडेय जी के हसीन सपने और बदलती दुनिया

लालित्य ललित
दिल्ली
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पांडेय जी अचानक से बौद्धिक हुए, जब उनके मन में विचार आया कि हाथी के दांत खाने के और दिखावे के और हुआ करते हैं; उन्होंने यह भी मान लिया कि दुनिया आपसे कहीं ज्यादा और मोल-भाव किए रखती है कि किससे क्या मिल जाए और कहाँ तक मिलने की संभावना है। वे तब तक आपसे ‘जोक’ की भांति चिपके रहेंगे और जब आपका खून आपके भीतर से निकल नहीं जाएगा, तब तक वे मुस्तैदी से अपने हथियार भी नहीं डालेंगे।
बहरहाल, दुनिया विचित्र है और जाहिर है उसके सपने भी विचित्र भी ही होंगे।
पिछले दिनों पांडेय जी ने एक आयोजन किया, जिसमें महत्वपूर्ण, आत्मीय और घनिष्ठ से कनिष्ठ तक के विभागीय लोग शामिल हुए। पांडेय जी बिजली विभाग में क्लर्क हैं, सारा सारा दिन फाइलों में डूबे रहने का उनका शौक है, और साहब जो धूप-धक्कड़ खाएगा, वह मीठे का शौकीन तो होगा ही…। सुना है घर के बड़े-बुजुर्ग कहा करते हैं कि “मीठा खाने से धूल-धक्कड़ आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती”, लेकिन साहब “जिसका कोई नहीं होता, उसका खुदा होता है।”
पांडेय जी की बिटिया का ब्याह था, जिसे मित्रों और बुजुर्गों की अनुकम्पा से अच्छा होना ही था।
बहरहाल, जब बेटी की विदाई पांडेय जी ने घर से की तो वे संभले रहे और उसके जाते ही अपने एकांत में भर-भरा कर रो दिए, बिलकुल सी.एन.जी. वाले स्टाइल में, धुएं रहित परिकल्पना के साथ।
गाड़ी जैसे ही आँखों से ओझल हुई तो कुछ देर में पांडेय जी अपने बिस्तर से जा लगे, और साहब निंदिया रानी जैसे उन्हीं की प्रतीक्षा कर रही हो। लेटते ही पांडेय जी दुनिया से बेखबर चित सो गए और सोते-सोते ज्ञात और अज्ञात विचार उनके भीतर मंडराने लगे।
वे विचार क्या थे, आइए उस यात्रा से आपकी भी सैर करवाते हैं-
◾एकांत अपना

घर सोया है,
यूँ कहिए देर तक जागा था
अब सोना भी चाहिए,
उनींदी आँखों को आराम मिलना अनिवार्य है,
अगली भोर तक
मन उठा और विचारों ने उसका साथ दिया,
दोपहर थी बाहर
चाय बनाई और चुपके से अपने एकांत में बात की,
मन ने कहा-
आत्मीय रिक्तता को कम नहीं किया जा सकता,
जो अनिवार्य है वह सम्पन्न होगा
नए सूरज से,
नए दिवस से संवाद होगा और विचारों का वेग निश्चित ही
जीवन के अध्याय को रोशन करेगा,
चाय पीता हुआ एक पिता कितना कुछ सोच लेता है…
जब उसके पिता के मित्र यह कहते हैं-
बेटा अब उम्र हो चली है मेरी और हसीजा की,
ये शब्द थे पिता के एक बुजुर्ग, अशक्त मित्र नय्यर साहब के
वह पिता के बारे में और मेरी भूमिका को लेकर काफी देर बतियाते रहे,
मेरी चाय के दौरान यह संवाद देर तक चला
सोचने लगा मन,
हर किसी का अपना एकांत होता है
अपनी दुनिया होती है
और अपना विचार,
जो कुहुकता हुआ दौड़ता रहता है अपनी गति से
चाय का प्याला है,
बिटिया की विदाई का पल जो कुछ देर पहले का है
जब उसने जाते हुए कहा था-
अपने को और मम्मी को संभालना पापा
आँखों में सुनामी है, जो थमने का नाम नहीं ले रही,
और एक पिता अपना एकांत तलाशता हुआ अपने छज्जे पर बैठा हुआ है,
हमेशा की तरह…।
कुछ देर में पांडेय जी अवचेतन मन से चेतन अवस्था में आ चुके थे। कहते हैं न! “यात्रा जारी रहती है, घर सोया हुआ था।” इतने में डोर बेल बजी, मिसेज दुआ थी। कहने लगी,-“भाई साहब, माफी चाहती हूँ कि आपको तंग किया। वह ढोलक चाहिए थी, जो चीकू ले आया था लेडीज संगीत के लिए। ” पांडेय जी ने ढोलक तो दे दी, पर उसका कवर नहीं दे पाए। इतने में रामप्यारी आई और ढूंढ कर कवर भी दे दिया।
पांडेय जी ने देखा दोपहर हुई है और छज्जे पर बैठते जरूर, लेकिन बर्फीली हवाओं ने प्रेम से कह दिया, पांडेय जी ज्यादा मत उड़िए, भीतर बैठिए, ठंड लग जाएगी तो दिक्कत आ जाएगी। बाहर बारिश का सा मौसम था, बेचारे पांडेय जी अंदर बिस्तर में आ गए और सोचने लगे, क्या जीवन है!
आदमी कब आम आदमी बनता है और कब दार्शनिक! सोचते हुए पांडेय जी एकसाथ कई भूमिकाओं को निभाने के लिए प्रतिबद्ध थे।
जीवन है और वह यात्रा के सहयात्री। और साहब हर यात्रा ऐसे ही चलती आ रही है।
कुछ देर के लिए पांडेय जी ने आँखें बंद की और उन्हें लगा कि काहे को दूसरों को तंग किया जाए।और इसी विचार को आते ही वे भी मुँह ढाप कर सो गए।
सोने से २ फायदे हैं, यह मन आपस में बता रहा था, वह यह कि आपको भूख नहीं लगती, आपकी गैस की भी बचत होती है और मन शांत रहता हुआ ध्यान की मुद्रा में चलायमान रहता है और बाकी जो है वह अंडर स्टुड है, है कि नहीं।
दिमाग लगाते रहिए मतलब लड़ाते रहिए। बाकी जिसे जहां जाना है, वह वहाँ जाएगा ही, समझने की बात है, जरा हाथ-मुँह धो कर चिंतन कीजिएगा, तभी फायदे में रहोगे।क्या समझे!
पांडेय जी ने महसूस किया कि सर्दी वाली बर्फीली ठंड राजधानी दिल्ली में आकर जाने वाला रास्ता भूल गई, भटक गई और न जाने क्या कहना चाहती है;मसला तो तब भी हल नहीं हुआ, जब बारिश की बौछार पड़ गई। ठंड ने अपना तांडव शुरू किया, जैसे भोले बाबा की भी इच्छा यही है। मानो वे स्वयं पार्वती मैया से कह रहे हों,-“भाग्यवान देखा धरतीवासियों को भी यह आनंद परिचित करवा दें, तभी तो वे हमारी स्तुति करेंगे। दरअसल, वे सुख में तो चिल्ल करते हैं, लेकिन सुमिरन कोई नहीं करता, लेकिन उनको याद दिलाने के लिए कुछ तो सितम, कुछ तो जतन करना ही पड़ेगा।”
पांडेय जी ने रामप्यारी से कहा,-” देखो जी, शाम का क्या प्लान है!”
रामप्यारी ने कहा कि-“कहीं जाने का नाम मत लेना, मैं कहीं जाने वाली नहीं और दूसरी बात हो या तीसरी, जो भी समझ लेना, मैं कहीं भी जाने वाली नहीं, नहीं जाऊंगी।”
पांडेय जी ने समझ लिया, कि इसे हुआ क्या!
बेचारे पांडेय जी थक-हार कर कहने लगे-“अच्छा ऐसा करना, जो फ्रिज में रखा है, वही बना लेना। मतलब कंज्यूम कर लेना।”
रामप्यारी कितनी भली थीं, और महिलाओं की तरह जो करती वही है, जो उन्हें करना है। फिर भी रामप्यारी ने कहा, कि-” मेरे मन में है कि दाल-चावल बना लूं। मौसम के अनुकूल भी है और स्वाद के लिए भी परफेक्ट डिश है।” बात तो सुघड़ गृहिणी वाली थी, जो कही गई थी उचित माध्यम से।
तभी चीकू दिखाई दिया तो पांडेय जी बोल पड़े,-“भइया चीकू, एक बात बताओ, आज नहाने की कसम खाई है!”
चीकू ने कहा-“बिलकुल ठीक कहा पापा जी। मैं चीकू, सुपुत्र विलायती राम पांडेय, भगवान को हाजिर- नाजिर मान कर यह शपथ लेता हूँ कि जो कहूंगा, सच कहूंगा, सच के सिवाय कुछ भी नहीं कहूंगा।”
उधर, पांडेय जी ने सोचा, पता नहीं बदमाश क्या कहने वाला है!
उसने फरमान जारी किया-“इस सर्दी में मैं नहाने वाला नहीं, केवल दाँतों में पेस्ट का सेवन करूंगा और सर्दी में खाने वाले सभी भोज्य पदार्थों का सेवन करूंगा।” सुनकर पांडेय जी हैरान हो गए।
तभी रामखेलावन ने कहा मोबाइल पर संदेश के जरिए “और सब कुशल!”
पांडेय जी ने सोचा भला आदमी है! कल ही कल में क्या बदल जाएगा!
कहा, “सब ठीक है।”
पांडेय जी ने मंथन किया कि कुछ ने मैसेंजर पर कहा, भाई हमें भूल गए!
पांडेय जी ने कहा,-“उम्र हो रही है, अब भूलने को भी मन करता है और जरा सोचिए कब तक कितने मित्रों को याद करूं और कितनों को मिस करता रहूं।”
अंतर्मन ने कहा, आप ठीक सोचते हैं पांडेय जी। सर्दी है, बूढ़ी हड्डियाँ चटख जाती है इन दिनों, अच्छा ही है इस टाइप के लोग नहीं आए, वरना लेने के देने पड़ जाते।
कई तरह की जिज्ञासाएं पांडेय जी के मन को घेरती हुई प्रतीत हुई। पाण्डेय जी ने मान लिया कि दुनिया का चरित्र आदान-प्रदान प्रवृत्ति की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए लगता है कि पल में तौला और पल में माशा!
बहरहाल, ज़िंदगी का ऊँट जहां करवट लेगा, उसी को भविष्य की सुखद कामनाओं का स्मृति पुंज मान लिया जाएगा।
सर्दी है, और उसके चलते आलम यह कि चाय बनाइए और कुछ देर में वह बिना कहे लस्सी बन जाने पर मजबूर हो जाती है। जैसे आर्थिक जगत देश की समूची अर्थव्यवस्था पर प्रहार करने से बाज नहीं आता।देश कहाँ जाएगा! किसी को नहीं मालूम।
अंतर्मन ने कहा, कोई अपनी रजत जयंती को लेकर मन में शंका पाल रहा, कोई रॉयल्टी के लिए दहाड़ रहा तो कोई किसी प्रकाशक के चक्कर काट रहा।
एक बेचारे अपने विलायती राम पांडेय जी इस मामले में ठीक है। उन्हें लगता है जो साहब लोगों की चरण वंदना करता है, वह तरक्की पा जाता है और जो चरण वंदना करने से परहेज करता है उसका मामला बिगड़ जाता है। इस बात को असंतुष्ट कुमार के साथ लल्लू भईया ने भी मान लिया है, कि जमाना जैसा हो, वैसा आचरण कर लेना चाहिए। इस बात को चौबे जी कहते-कहते सेवा मुक्त हो गए और अब लोगों की स्मृति पटल पर आए। मजेदार बात यह कि कुछ दिनों के अंदर स्मृति पटल से भी विस्थापित हो जाएंगे और कहानी खतम। वहां कुछ दिनों में कोई नई चरण पादुका आ जाएगी और नए चाटुकार भी।
अंतर्मन कुमार ने कहा, भाई साहब सीट किसी की कभी भी खाली नहीं रहती, इस बात को कायदे से समझ लेना चाहिए।
पांडेय जी ने घर आते ही टी.वी. चला लिया, क्या पता वहाँ खबर आई हो! टी.वी. खोलते ही मौसम बदल जाएगा, अभी तो पहाड़ भी राजस्थान बने हुए हैं और मैदानी इलाके पहाड़।

पांडेय जी ने सोच लिया, जब होगा मौसम ठीक होगा, यह मान लिया जाएगा। हरि ओम, कथा अनंता।