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कहर बरसाते-बरपाते पहाड़

सरोज प्रजापति ‘सरोज’
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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मेरा गाँव ऐसे इलाके में है, जहां हर साल पहाड़ों के दरकने (भूस्खलन) का भयावह रूप देखने को मिल रहा है। बादल फटने से भयंकर त्रासदी से दो-चार होना पड़ रहा है। आषाढ़-सावन भादो में कभी भी यह मंजर हतप्रभ कर रहा है। आए-दिन पहाड़ों में घरों के समूल दफन होने की खबरें सुन बरसात की विभीषिका का अंदाजा लगाया जा सकता है।
परती क्षेत्र में जन्म लेने के कारण अधिकांश लोगों की तरह मैं भी निश्चित हो सब देख ही रही हूँ। आए-दिन समाचार पत्रों में भू-स्खलन, बाढ़ से घिरने, बहने, धंसने और भोगने का अनुभव हो रहा है। सन् १९९४ की घटना आज भी याद है, जब पूरी रात्रि भारी बारिश के साथ दामिनी-बादलों की भयंकर गर्जन होती रही। सुबह जब देखा-सुना कि मण्डी कांगड़ा स्थित बरोट के गाँव में बादल फटने से कहर बरपा, जिंदगियों को लील गया, घर-खेत-खलिहान सब बह गए, नाले बन गए, तो आँखें खुली रह गईं।
उसके पश्चात सन् ११ अगस्त, २०१७ की वह भयावह रात, जब ५२ ज़िंदगी मौत के आगोश में चली गई थी। अर्द्धरात्रि का वह भयानक मंजर, जब हिमाचल पथ परिवहन निगम की २ बसें पूरी तरह पहाड़ी में समा गई थी। एक शिमला से जम्मू जा रही थी तो दूसरी धर्मशाला से शिमला जा रही थी। दोनों पहाड़ी के दरकने-बहने से मलबे में गहरी समा गई। बाद में मर्दित शरीर, जो आधे- अधूरे निकले; स्वजनों को प्राप्त हो सके, कई तो आज तक अपनों को तलाशते हैं। जो यात्री किसी कारण से बाहर निकले थे, क्योंकि वहाँ बस स्टॉप था, वही किस्मत से बच निकले।
८ अगस्त, २०२४ को जब सावन माह में श्रद्धालु शिमला स्थित शिव मंदिर में पूजा-अर्चना कर रहे थे। क्षणभर में पहाड़ दरके और पेड़- पहाड़ी समेत मंदिर के ऊपर आ गया तथा २०-२५ लोग दब गए एवं उफनते नाले में भी बह गए। एक माह के खोजी आपरेशन द्वारा मृत क्षत-विक्षत निकाले गए। उसके बाद सोलन और सिरमौर जिले में भी भू-स्खलन और बाढ़ से कई घर-ज़िंदगी चली गई। एक आदमी की पत्नी, बच्चे, बूढ़े माँ-बाप बह गए। बेचारा कई दिनों तक अपने घर एवं अपनों को ढूंढता-फिरता रहा।
और इस बार फिर मण्डी कांगड़ा, कुल्लू, मनाली, शिमला और सोलन सहित कई जगह ‌आफत आन पड़ी।मण्डी में भयंकर भू-स्खलन… पूरा पहाड़ मलबे में तब्दील हो गया, जैसे किसी ने विस्फोट किया हो। किसी भी तरह की आवाजाही खतरे से खाली नहीं है। सीना तान खड़े पहाड़ धराशायी हो गए हैं। ये ऐसे भर-भराकर गिर रहे हैं, जैसे धूल का टीला हो।
हजारों टन लकड़ियाँ बहाती नदी ले गई, जो बड़ी तादाद में जंगलों के अवैध कटान की तस्वीर दर्शाती हैं।
सब जगह प्रकृति, तबाही का परिचय देती दिखाई दे रही है। घर भी गया, जमीं भी नहीं बची। हालात परेशान करने वाले हैं। आपदा प्रभावित क्षेत्रों में कुछ लोगों ने मानवीय दृष्टिकोण का परिचय दिया और राहत सामग्री, हर तरह की सहायता देकर हर्ष और उम्मीदों का संचार किया, जिससे लगता है कि मानवता आज भी कायम है।

सारी स्थिति दिल दहला देने वाली है, कलेजा धड़क उठता है। चेहरे पर आतंक की रेखाएं उभर आती है कि कब प्रकृति का क्या रूप देखने को मिले। जहां कभी सुकून बसता था, आज वीरान, हरितिमा रहित, पत्थर, खंडहर, शवों और पहाड़ों का विकृत रूप पड़ा है। कहीं मानव इसका कारण है। पहाड़ी क्षेत्र कांक्रीट के पहाड़ बन गए हैं। बहुमंजिला इमारतें, विकास के नाम पर सड़कें चौड़ी की जा रही हैं, ‘फोरलेन’ बनाए जा रहे हैं और पहाड़ों को सुरंग में विस्तार दिया जा रहा है। पहाड़ खोखले हो गए हैं, जिसका नतीजा आए-दिन भयंकर तबाही और बादल फटने जैसी घटनाओं के रूप में देखने को मिल रहा है।

परिचय-सरोज कुमारी लेखन संसार में सरोज प्रजापति ‘सरोज’ नाम से जानी जाती हैं। २० सितम्बर (१९८०) को हिमाचल प्रदेश में जन्मीं और वर्तमान में स्थाई निवास जिला मण्डी (हिमाचल प्रदेश) है। इनको हिन्दी भाषा का ज्ञान है। लेखन विधा-पद्य-गद्य है। परास्नातक तक शिक्षित व नौकरी करती हैं। ‘सरोज’ के पसंदीदा हिन्दी लेखक- मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा हैं। जीवन लक्ष्य-लेखन ही है।