ऋचा गिरि
दिल्ली
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कहाँ खो गया रिश्तों से प्रेम…?
एक पिता ने अपने ही ‘स्वाभिमान’ की हत्या कर दी, अपने स्वाभिमान के लिए फिर और स्वाभिमानी बन गया हमेशा के लिए!
पिता का धर्म होता है अपने बच्चों के ख्वाबों को हकीकत बनाने में उसके पीछे चट्टान की मानिंद मजबूती से खड़े होने का, अपने बच्चों के स्वप्निल नयनों में बसी ऊँचाई छूने की अभीप्सा को भांपकर उसके पंखों को अनंत उड़ान भरने के लिए ऑक्सीजन बनने का, लेकिन हाल में हरियाणा में खेल में स्वर्ण पदक जीत चुकी राधिका यादव की पिता द्वारा गोली मारकर हत्या के बाद इस पवित्र रिश्ते पर प्रश्न चिन्ह लग गया है।
क्या एक पिता अपने ही कलेजे के टुकड़े को मार सकता है ? क्या रिश्तों की कमजोर होती दौड़ में यह रिश्ता भी कमजोर हो सकता है ? क्या पिता का पिता-धर्म हार सकता है अपने ही तथाकथित ‘स्वाभिमान’ से ?
महानगरों की गगनचुम्बी इमारतों में निवास करने वाले तथाकथित ‘सभ्य समाज’ की बौनी उंगलियाँ एक-एक कर हस्ताक्षर करने लगी उसके मृतक अवशेष स्वाभिमान पर, ताकि यह प्रतीक बन सके ऐसे पिताओं के स्वाभिमान का, जिनकी आँखों की पुतलियों पर संस्कारों के पर्दे सजाए गए हैं। ये पर्दे देखने में बहुत भव्य लगते हैं और आकर्षक भी, पर इनकी भव्यता और इनके आकर्षण पाषाण युगीन हैं, मध्ययुगीन भी; हृदयहीन और अतार्किक भी!!
कभी पिता का नन्हा-सा स्वाभिमान रहा होगा, जिसके लिए उसकी कई महत्वाकांक्षाएं रही होंगी, सपने होंगे, कितने जतन किए होंगे उन नन्ही महत्वाकांक्षाओं को उसकी मंजिल तक पहुँचाने में। इस बीच कब कथित ‘संस्कारों’ की कालिमा पनपी और विकसित हुई, उसको एहसास नहीं हुआ और उसका प्रेम नन्हें ‘स्वाभिमान’ से जड़ ‘संस्कारी स्वाभिमान’ में परिवर्तित हो गया, शायद उसे भी नहीं पता चला हो।
उसका नन्हा स्वाभिमान उसके कद का हो गया और तर्क-वितर्क भी करने लगा, और क्यों ना करे उसी के प्रभाव उसमें भी रहे होंगे। आखिर था तो उसी का अंश, वह आवेश में कैसे भूल गया!!
अब गोलीबारी के बाद उसके पास कुछ नहीं बचा। कुछ नहीं, सिवाय मृत स्वाभिमान के और उन ‘सभ्य’ हस्ताक्षरों के जो धीरे-धीरे धूमिल पड़ जाएंगे।
क्या उसकी आंतरिक आवाज उस पर तंज नहीं कसेगी ? वह कब तक अपने आँसू छुपा पाएगा ? क्या उसकी चुप्पी में जकड़े रुदन उसे जीने देंगे ? हर पल उसे अपने नन्हें स्वाभिमान के चलचित्र खेलते-कूदते दिखेंगे और ‘पापा-पापा कहते हुए उस पर हँसेगी और खूब हँसेगी !
मेरा पिता हार गया, अपने भीतर छिपे जड़ पुरुष से !