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रिश्ते कहते हैं किसको, समझ न पाया

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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रिश्ते कहते हैं किसको ?
अब तक समझ न पाया
रिश्तों की रेलम-पेल में,
बस स्वार्थ ही स्वार्थ नजर आया।

जग ने पाया क्या!
बना के रिश्तों की लड़ियाँ
मिल न सकी कभी आपस में,
संबंधों की बेमेल कड़ियाँ।

“तू मेरा है मैं तेरा हूँ”,
बस इतना कहना ही क्या रिश्ता है ?
संग न चल पाता दो पग भी
हाय ! ये कैसा रिश्ता-नाता है ?

क्या करूँ कवायद इन रिश्तों की,
रूप इनके है बड़े निराले
देते तोहफे कामयाबी के कहीं,
तो बरसाते कहीं हार के पाले।

रिश्तों की गहराई की अब तक,
थाह ना ले पाया है कोई
अपनापन का मुखौटा पहने,
शोषण करता है हर कोई।

साधु हो या दुर्जन कोई,
मतलब के रिश्ते निभाते हैं
दिल की चंद खुशी की खातिर,
रिश्तों का बलिदान चढाते है।

रिश्तों के चक्रव्यूह में फँसकर ही,
आज के संबंधों का ये हाल है।
अपना-अपना कहके सबने लूटा,
अपनी हस्ती ही यारों बदहाल है॥

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”