कुल पृष्ठ दर्शन : 10

You are currently viewing टूटते-बिखरते परिवार की गंभीर चिंता आवश्यक

टूटते-बिखरते परिवार की गंभीर चिंता आवश्यक

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
************************************

गुरुग्राम में पिता द्वारा टेनिस खिलाड़ी बेटी राधिका की गोली मार कर हत्या ने पूरे देश में सनसनी फैला कर रख दी है। कहा जा रहा है कि पिता और बेटी के बीच कोई विवाद था। इसी तरह जयपुर में एक कलियुगी पिता सालों से अपनी ही २ नाबालिग बेटियों का शारीरिक शोषण कर रहा था। आश्चर्य की बात तो यह है कि बच्चियों की माँ सब कुछ जानते हुए भी समाज में बदनामी के डर के कारण आँखें मूदें हुई थी। इसी तरह की एक घटना सिरोही में हुई, जहाँ पिता ने अपनी ही ८ वर्ष की बेटी के साथ तब आपत्तिजनक हरकत की, जब उसकी माँ मजदूरी करने गई हुई थी…।

आजकल सोशल मीडिया, टी.वी. और समाचार पत्र ऐसी घटनाओं से भरे रहते हैं, जबकि ज्यादातर इस तरह की घटनाएं बदनामी के डर से घरों की चारदीवारी के अंदर ही दबी रह जाती हैं। विचारणीय विषय यह है, कि हमारे परिवारों में जो भावनात्मक निकटता और संबंध थे, क्या वह समाप्त हो रहे हैं ? परिवार किसी भी समाज की आधारभूत इकाई होती है। सच तो यह है कि वह समाज की नींव होती है, जिसमें सदस्यों को भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक संरक्षण प्राप्त होता था, परंतु तकनीक के इस समय में जो बदलाव दृष्टिगत हो रहा है; उसमें परिवारों से भावनाओं की अवधारणा समाप्त होती दिखाई पड़ रही है
समाज विज्ञानियों का कहना है, कि आज जो समाज है;वहाँ भावनाएं व्यवहार से अलग होती दिख रही हैं। उनका तर्क है कि आधुनिकतावाद का केंद्र सूचना और ज्ञान होने के कारण बड़े पैमाने पर औद्योगिक समाज के प्रादुर्भाव से भावना की उपेक्षा हो रही है।
यही कारण है, कि समाज में विखंडन और अलगाव की स्थितियाँ विकसित हो रही हैं। इसमे कोई दो राय नहीं है, कि औपचारिक संबंधों में तो काफी समय से बदलाव देखा जा रहा था, लेकिन अब अनौपचारिक संबंधों-जैसे परिवार, मित्र के संबंध भी चुनौती प्राप्त कर रहे हैं। फिर चाहे रक्त संबंध हो या विवाह संबंध, सबके संबंधों में असहनशीलता परिवारों में कब प्रवेश कर गई, यह गंभीर चिंता का विषय है। यही कारण है, कि तलाक के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है।
एकल परिवार, लिव-इन-रिलेशनशिप तथा समलैंगिक विवाह ऐसे बदलाव हैं, जो पारंपरिक परिवार के ढांचे एवं विवाह के संबंधों में बदलाव के सूचक हैं। आपसी रिश्तों में अहम् की भावना, साथी को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति परिवारों के बिखराव का कारण बन रही है। समाज में संवादहीनता के साथ भावनात्मक शून्यता की स्थिति प्रत्येक घटना में देखी जा रही है।
अधिकांश लोग आभासी दुनिया में डूब कर वास्तविक खुशियाँ तलाश रहे हैं और वास्तविक रिश्ते हाशिए पर जा रहे हैं। परिवारों में हँसी-खुशी के स्थान पर मौन तलाक की घटनाएं बढ़ती जा रहीं हैं। यह केवल इसलिए है, क्योंकि पति- पत्नी के बीच भावनात्मक जुड़ाव समाप्त हो जाता है, पर सामाजिक, आर्थिक या कई बार बच्चों के लिए साथ रह रहे होते हैं। ऐसे रिश्ते बाहर से तो सामान्य दिखाई पड़ते हैं, परंतु वास्तव में वह अलग-अलग रह रहे होते हैं।
आज परिवार-संस्था को बचाने के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता है। पति और पत्नी दोनों को ही एक*दूसरे के प्रति समझ, प्यार और सम्मान विकसित करना पड़ेगा। महिला सदस्य को भी बराबरी का सम्मान और परिवार में स्थान मिले।
आक्रामकता, असुरक्षा, अविश्वास, तनाव और निराशा परिवार के बिखराव का परिणाम है। इसलिए आवश्यक है, कि परिवार को बिखराव से बचाने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास किए जाएँ।