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सावन का मौसम है…

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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सावन का मौसम है, बिना घटा घनघोर।
बदरा हैं बारिश बिन, सूखे धरती चहुं ओर।
कोयलिया नहीं कुहुके, नाचे ना वन में मोर।
नदियाँ बहतीं जल बिन, झीलें करतीं न विभोर।

अब नहीं होते मन के मंथन, भाई बहन बिन रक्षाबंधन।
भव्य दिखें पंडाल बहुत पर, भाव बिना हों शिव के पूजन।
आरती होती लेकिन, होते डीजे के शोर।
नर्तकियाँ नाचे हैं, परिधान बिना हर ओर।
सावन का मौसम है…॥

कुम्भ नहाते पुण्य न मिलते, मृत्यु मिलें और बिछड़े रिश्ते।
पावन गंगा करके प्रदूषित, प्रभु से अपने दुखड़े भजते।
काँवड़ियों की मुश्किल, जाति-भेद का शोर।
मिटती अब मानवता, है दानवता का जोर।
सावन का मौसम है…॥

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।