संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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कहा जाता है, “शहर की दवा और गाँव की हवा दोनों बराबर होती है”, विगत दिनों इस बात का मुझे प्रत्यक्ष अनुभव हुआ। उत्तर महाराष्ट्र के खेतों में इन दिनों बाजरा और मक्का की फसल लहलहा रही है। बड़ी जोरदार फसलें हैं। हरियाली से खिले खेतों के विस्तीर्ण पट, जंगलों में खिले तृनपात, मेड़ों पर फैली लताएँ और दूर फैली सह्याद्रि की मनोरम चोटियाँ स्वर्ग-सा समां निर्मित कर रही है। ऐसे में फसलों पर कीटनाशक फुहारने जब हम चले तो वह प्रकृति के सानिध्य की मंगलतम घड़ियाँ थी।
वर्षा ऋतु को महसूस करने का आनंद अवर्णननीय है। यह आनंद तब हजार गुना बढ़ जाता है, जब वर्षा प्रलंबित हो जाए, फसलों के चेहरे मुरझाने लगे और वर्षा की दरकार तीव्रता से महसूस हो। इन दिनों यहाँ की फसलों का यही आलम है और चातक बनकर सबको वर्षा होने की आस है। ऐसे में जब हम ट्रैक्टर लेकर दवाई की फुहार करने चले तो आसपास के पहाड़ों पर अचानक जलधारा बरसने लगी। आह, कितने सुकून क्षण थे वे! ओह! देखते ही देखते चहुँओर की पहाड़ियों पर घनघोर काले मेघ बरसने लगे तो दूसरी और चकाचक धूप! मैंने पूरब की ओर देखा, तो इंद्रधनुष की लम्बी चकोर इस क्षितिज से उस क्षितिज को छूती हुई उभर आई। प्रकाश के भी कितने तरीके होते हैं। सब एक से एक लुभावन प्रकाश के उस नए समीकरण में नहा ही रहे थे कि तड़ा-तड़ छनछनाती जलधाराएँ हमारे उपर बरसने लगी।
अब हम काम समेटकर बढ़ने ही लगे कि अचानक चमचमाती धूप आ धमकी। धूप, बारिश और इंद्रधनुष के सम्मिश्रण का विलोभनीय आनंद, सुरमयी प्रकाश और उपर काले मेघों ने कमाल का दृश्य उपस्थित कर दिया। बारिश ने सह्याद्रि की मालाओं को पूरी तरह घेर लिया। संध्या की पैंजनिया
छम-छम बजने लगी। क्षितिजों पर हजारों तरह के रंग उमड़ पड़े। वर्षा के आगमन से फसलों के चेहरे चमचमा उठे। उम्दा ताज़गी से वातायन भर उठा। सचमुच, प्रकृति का यह रोमांच बड़ा ही दिलकश था।
परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।