अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर (मध्यप्रदेश)
******************************************
मैं दर्पण नहीं, अपनी पहचान हूँ,
मैं भीड़ का हिस्सा नहीं-
एक अलग राह हूँ,
जहां सौंदर्य परिभाषाओं में नहीं,
अहसासों में साँस लेता है।
लोग पूछते हैं-‘अब भी साड़ी ?’
जैसे ये कोई पिछली सदी की बात हो,
पर उन्हें क्या मालूम!
हर मोड़ पर ये साड़ी
मुझे मेरी जड़ों से जोड़ती है।
मैं चूड़ियाँ पहनती हूँ,
ना दिखावे को, ना परम्परा निभाने को
बल्कि हर खनक में,
मैं खुद को महसूस करती हूँ-
एक स्त्री, जो समय की धूल नहीं,
अपने स्वभाव की चाँदनी ओढ़ती है।
फूल गूंथती हूँ बालों में,
क्योंकि कुछ सुगंध बाजार में नहीं मिलतीं
वे आत्मा से उठती हैं-
और वही मुझे सबसे अलग बनाती है।
मैं सजती हूँ…
ना किसी की तारीफों की उम्मीद में,
ना समाज की नज़रों की जरूरत में-
बस खुद से मिलने की एक कोशिश में,
हर दिन, हर सुबह।
जो लोग ‘चलन’ की बात करते हैं,
उन्हें शायद कभी खुद से प्यार नहीं हुआ-
वरना जान जाते,
कि सबसे सुंदर रचना
वो होती है, जो आत्मा से उपजी हो।
मैं फैशन नहीं पहनती,
ना कोई छाप, ना पहचान उधार ली हुई
मैं वो पहनती हूँ-
जो मेरे भीतर की स्त्री को सुकून दे।
क्योंकि मैं दर्पण नहीं,
अपनी पहचान हूँ॥