उर्मिला कुमारी ‘साईप्रीत’
कटनी (मध्यप्रदेश )
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हरियाली आई, हरियाली छाई,
मौसम में वर्षा, ठंडाई फिर लाई
चंहुओर धरती हरी-भरी कर गई,
बंजर भूमि भी फिर थी मुस्काई।
मिट्टी के कण-कण में वर्षा समाई,
जल सोखकर, धरा नमी थी बढ़ाई
घटते हुए जल स्तर में वृद्धि थी हुई,
वर्षा रानी का, धरा पर करिश्मा भाई।
वर्षा ऋतुराज में वृक्षारोपण करें भाई,
अपने ही हाथों से कर दो बीज रोपाई
जैसे-जैसे यह दुनिया में आगे बढ़ेगा,
तुम सबको अपने जीवन की देगा दुहाई।
कोमल पौधा बन जाए एक दिन वृक्ष,
फूल-फल-औषधियाँ बन गई कमाई,
करो जतन, दस पौधा मिलकर उगाई,
वृक्षारोपण करते हुए नाम की बहुत कमाई।
धरा का श्रृंगार कर धानी चुनर ओढ़ाई,
पावन बन जाए हर एक कोना है भाई,
हरा-भरा घर आँगन अपना होना भाई,
सींच-सींच कर जड़ मजबूत हो आई।
हरियाली अमावस्या पर विश्राम मुद्रा आई,
हल को दे दो आज सब विश्राम भाई
मिलकर सब हरियाली गीत, मधुर सुनाई
झूम झूम कर हरियाली तीज है मनाई।
हरे परिधान से श्रृंगार संग मेंहदी रचाई,
पकवान संग हरियाली तीज है मनाई
‘उर’ से सभी एक-दूजे को दी बधाई,
गले मिलकर आशीर्वाद बड़ों का पाई।
तपते सूरज से ही हरियाली मुरझाई,
हरे-भरे वृक्षों से नीचे शीतलता छाई
बच्चे-बूढ़े भरी दोपहरी खाट बिछाई,
ठंडी शीतल हवा का एहसास है पाई।
धरा की माटी सबको पुकारती भाई,
मिलकर सब मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई।
इसमें ही उत्पादकता तुमने थी बढ़ाई,
उत्पादन क्षमता ने पहचान बढ़ाई॥