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बिन पेंदी के लोटे

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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आज-कल बहुत से लोग ऐसे ही होते हैं,
वह, जहां मलाई देखते हैं
वहीं, उसके इर्द-गिर्द नजर आते हैं,
वह सही में बिन पेंदी के लोटें हैं।

कभी सत्ता सुख, कभी कुर्सी का मोह,
लगे हुए हैं अपनी जेब भरने में
क्योंकि यही है उनका असली सुख,
वह सही में बिन पेंदी के लोटे हैं।

धन-धन की इस झनकार से
गूँज रहा है संसार,
सब इसी को पाने में लगे हैं
लालची बन रास्ता भटक रहे हैं,
वह सही में बिन पेंदी के लोटे हैं।

यही खेल चल रहा है चारों ओर,
भ्रष्ट, लाचार व लोभी बना हुआ तंत्र
जिम्मेदार कुंभकर्णी नींद में सोए हुए,
वह सही में बिन पेंदी के लोटे हैं।

खाते हैं जो अपने देश का नमक,
वह फ़र्ज़ अदा ही नहीं करते हैं।
उन गिद्धों से देश को बचाना ही होगा,
जो सही में बिन पेंदी के लोटे हैं॥