ममता साहू
कांकेर (छत्तीसगढ़)
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घनघोर घटा चहुँ ओर छाए,
नाचे मोर, पपीहा गाए…
मैं अकेली रह गई सखी री,
देखो सावन बीता जाए।
पिया मोरे कब आएंगे ?
प्रीत के गीत कब गाएंगे…
अब तो विरह आग लगाए,
देखो सावन बीता जाए।
सावन में हिंडोला सजाए,
सखियाँ पिया संग झूलन जाए…
मोरे पिया काहे रूठा हाय,
देखो सावन बीता जाए।
सावन की हरियाली रुलाए,
बिन तोरे जिया ना जाए…।
जल्दी आओ मोरे पिया जी,
देखो सावन बीता जाए॥