सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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जिनकी याद में मन रमे दिन-रात वे मेरे महाकाल,
मेरी चर्चा में, मेरी परिचर्चा में रहे वे मेरे महाकाल।
डमरू की डिम-डिम में, क्षिप्रा की कल-कल में,
कड़वे सत्य, मीठे भरम को रचते मेरे महाकाल।
सृष्टि के हर कण, हर कली, हर कुसुम में बसते,
संकट का सहारा, दर्द की दवा है मेरे महाकाल।
जब ये दुनिया तज दे, भले हर शख़्स मुँह मोड़ ले,
एकाकी के साथी, दिल की धड़कन मेरे महाकाल।
ज़िंदगी के मुश्किल दौर को, आसान करते जो,
भटक जाऊँ तो राह दिखाते हैं मेरे महाकाल।
मेरी आँखों में महादेव की सूरत का है उजाला,
सपनों के परदे में रहस्य सुलझाते मेरे महाकाल।
स्वयं में ही मुझको मिले, स्वयं ही मैं उनमें मिलूं।
मेरा हर माध्यम, मेरी मंजिलों में मेरे महाकाल।
नश्वर है ये संसार, शिव ही आदि, शिव ही अनंत,
मेरी विनती, मेरी नातेदारी आपसे मेरे महाकाल।
न कोई जाति, न कोई धर्म, करूँ बस एक कर्म,
साँसों की माला, होंठों पर नाम, मेरे महाकाल।
आप जीवन, आप ही मृत्यु, आप रहेंगे प्रतिपल,
धरा से नभ तक प्राण यात्रा में रहे मेरे महाकाल॥