सोनीपत (हरियाणा)।
देशप्रेम व सद्साहित्य के संरक्षण हेतु समर्पित कल्पकथा साहित्य संस्था की २०९वीं आभासी काव्य गोष्ठी विविध रसों, लोक पर्वों एवं सांस्कृतिक उल्लास से परिपूर्ण रचनाओं के संग बहुरंगी भाव-लोक में डूबकर हुई। इस आयोजन में लोक-आस्था पर्व कजलियाँ, स्नेह-पर्व रक्षाबंधन, श्रावणी तथा वेदमाता गायत्री प्राकट्य पर्व के पावन अवसर पर सहभागियों ने भावपूर्ण रचनाओं द्वारा संस्कृति व पुष्पांजलि अर्पित की।
संस्था की संवाद प्रभारी ज्योति राघव सिंह ने बताया कि अध्यक्षता वाराणसी के साहित्यकार पं. अवधेश प्रसाद मिश्र ‘मधुप’ ने की। मुख्य अतिथि देहरादून से वरिष्ठ साहित्यकार हेमचंद्र सकलानी रहे। शुभारंभ वरिष्ठ साहित्यकार विजय रघुनाथराव डांगे (नागपुर) द्वारा संगीतमय गुरु वंदना, गणेश वंदना एवं सरस्वती-वंदना के साथ किया गया। श्रद्धा से ओत-प्रोत काव्य मंच पर देश के विभिन्न प्रांतों से जुड़े साहित्यकारों ने अपनी-अपनी वाणी से रस-गंगा प्रवाहित की। श्री डांगे ने ‘रक्षाबंधन’ व ‘कन्हैया देवकी नंदन वीर, अवतारी यमुना के तीर’ द्वारा भक्ति गंगा प्रवाहित की। श्री सकलानी ने ‘कुछ ऐसा भी कर’ रचना में ‘कुछ ऐसा भी कर तू इस जहान में, जो जिंदा रह सके हर एक जुबान में’ से सकारात्मक संदेश दिया। संस्थापक राधाश्री शर्मा ने रचना ‘सदा न रहे’ में नश्वर जीवन के अटल सत्य को शब्द दिए। पवनेश मिश्र ने जलभराव, भूमिकटाव, बाढ़ आदि की समस्या को कुंडलियों के माध्यम से उकेरते हुए उनके हल बताए। अन्य रचनाकारों में मानिंद्र कुमार श्रीवास्तव, डॉ. श्याम बिहारी मिश्र, शालिनी बसेड़िया, संपत्ति चौरे, नंदकिशोर बहुखंडी, डॉ. ऊषा पाण्डेय, पं. ‘मधुप’, भगवानदास शर्मा, डॉ. नलिनी शर्मा और बिटिया अनन्या शर्मा आदि ने भी काव्य पाठ किया। विशेष आकर्षण ‘कजलियाँ’ विषय पर विमर्श रहा, जिसमें बुंदेलखण्ड अंचल की लोक-आस्था, पर्यावरण संरक्षण एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि का संगम उभरकर सामने आया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में ‘मधुप’ ने कहा कि समाज के लिए लिखो, राष्ट्र के लिए लिखो, सत्य के लिए लिखो, सद साहित्य लिखो, कल्प कथा के लिए लिखो। अतिथि श्री सकलानी ने कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए साहित्य-संवर्द्धन में संस्था की भूमिका को रेखांकित किया।
संचालन का दायित्व आशुकवि भास्कर सिंह ‘माणिक’ एवं पवनेश मिश्र ने सौहार्दपूर्ण शब्द-शैली में निभाया। राधाश्री शर्मा ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।