अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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उफ़! ये बारिश की बूँदें,
जैसे धरती के मन की मुस्कान
थके हुए पत्तों को है सींचतीं,
हर जीव को देतीं नया अरमान।
गिरती हैं, फिर मिट जातीं,
पर हर बार नया जीवन जगातीं
सिखातीं कि गिरना अंत नहीं,
गिरकर उठना ही सच्ची करामात है कहीं।
हर बूँद कहती है धीमे सुर में-
“जीवन बहाव है, रुकना नहीं।”
छोटा होकर भी भर देती है,
सूखी जड़ों में साँस नई।
चलो हम भी जीना सीखें,
सबको मुस्कान दें जाएँ
क्या पता कल हो न हो,
इसलिए बूँदों-सा बन जाएँ।
तो आओ हम भी बूँदों जैसे बनें,
छोटे सही, पर जीवन दें।
गिरते हुए भी मुस्कुराएँ,
और हर किसी को जीना सिखाएँ॥