डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
*************************************************
खेल समझ बस जीभ का, शब्द लपकती जान।
अन्तर्मन के भाव से, गढ़े मान-अपमान॥
नवरस से जिह्वा लसित, उच्चारण स्थान।
तनिक प्रमादित चूक हो, पतन समझ इन्सान॥
सावधान मन वञ्चना, जीभ बने मनमीत।
शब्द फँसे मन जाल में, जीभ बिगाड़े प्रीत॥
नित जिह्वा हो लालची, वाणी फँसे कुचक्र।
मर्यादा तोड़े कहीं, कहीं दिलाये फ़क्र॥
शब्दों की रस चासनी, करे जीभ रसपान।
कालचक्र की आड़ में, करे अनादर जान॥
शब्द फँसे जिह्वा कपट, भूले स्वयं प्रयोग।
शब्द बाण व्यक्तित्व को, दे यश या दुर्योग॥
करे सत्य से शत्रुता, मिथ्यावादन प्रीत।
तजे जीभ यथार्थ रस, विमल वचन नवनीत॥
पद सत्ता सुख यश विभव, जीभ करे क्षण नाश।
करे सत्य मिथ्या त्वरित, विश्वबन्धु कहँ आश॥
अद्भुत माया जीभ की, घायल करती शब्द।
मानवीय शुभ चिन्तना, मिटते पथ आरब्ध॥
वाणी जिह्वा से सृजित, हेतु शब्द संसार।
मति विवेक स्वर संयमित, यश- अपयश आधार॥
सावधान मुख से ध्वनित, करें शब्द व्यवहार।
वशीभूत हिय भाव मन, सत्य प्रीत उद्गार॥
नीति न्याय पथ साधिका, सत्य पूत मृदुभाष।
रिश्ते अपनापन मधुर, विश्व शान्ति अभिलाष॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥