दिल्ली
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अन्तरजाल के विस्तार ने आधुनिक दौर में जीवन को अनेक सुविधाएं दी हैं, लेकिन कुछ नए गंभीर संकट भी पैदा किए हैं। इनमें सबसे गंभीर संकटों में से एक है ऑनलाइन खेल या कहें तो मनी गेमिंग की बढ़ती लत। यह सच है कि खेल, मनोरंजन का साधन हो सकता है, पर जब इसमें धन का जुड़ाव होता है, तब यह सीधा-सीधा जुएं-सट्टे के रूप में बदल जाता है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि ऑनलाइन मनी गेमिंग यदि लत बन जाए तो यह व्यक्ति एवं परिवार को भी कंगाल कर सकती है। एक आँकड़े के अनुसार देश में एक साल में ४५ करोड़ लोगों ने २० हजार करोड़ ₹ गवां दिए हैं। सब कुछ गंवा कर आत्महत्या करने के मामले भी प्रकाश में आते रहे हैं। इन्हीं त्रासद विडम्बनाओं के बाद ऑनलाइन गेमिंग पर नियंत्रण का एक विधेयक भारत सरकार इसी मानसून सत्र में ऑनलाइन गेमिंग संवर्धन एवं विनियमन विधेयक २०२५ लेकर आई है, जिसे गंभीर चर्चा के बिना संसद ने पारित भी कर दिया है। यह विधेयक पैसे से खेले जाने वाले किसी भी ऑनलाइन खेल को गैर-कानूनी घोषित करता है। यह स्वागत योग्य कदम है, क्योंकि खेल के नाम पर अरबों रुपए का लेन-देन और करोड़ों युवाओं की मानसिक शांति को नष्ट करने वाली प्रवृत्ति दिनों-दिन विकराल रूप ले रही है।
आज स्थिति यह है, कि ऑनलाइन खेल की लत केवल समय और धन की बर्बादी ही नहीं कर रही, बल्कि सामाजिक-पारिवारिक रिश्तों में भी तनाव और विघटन का कारण बन रही है। विद्यालय और महाविद्यालय के छात्र पढ़ाई की उपेक्षा कर इस आभासी दुनिया में डूबते जा रहे हैं। युवा वर्ग का बड़ा हिस्सा रात-दिन इसमें डूबा रहता है, जिससे उनके व्यक्तित्व और भविष्य पर गहरा नकारात्मक असर पड़ रहा है। दिन-रात स्क्रीन से चिपके रहने वाले युवक चिड़चिड़ेपन, अवसाद और एकाकीपन के शिकार हो रहे हैं। उनमें हिंसक प्रवृत्तियाँ भी उभर रही हैं। कई ऐसी खबरें भी आ चुकी है, जिनमें लगातार आनलाइन खेल खेलते रहने से मना करने पर कोई किशोर हिंसक हो गया और उसने आत्महत्या कर ली या फिर किसी की जान ले ली। एक पूरी पीढ़ी, जिसे राष्ट्र-निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए था, अपनी ऊर्जा और रचनात्मकता इस आभासी जुएं में गँवा रही है।
सरकार के मुताबिक वह ई-खेल और सामाजिक खेल को बढ़ावा देने के लिए अवश्य उत्सुक है, जिसमें कोई वित्तीय जोखिम न हो। आभासी वित्त खेल का वार्षिक राजस्व ३१ हजार करोड़ ₹ से अधिक है, साथ ही यह हर साल प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष करों के रूप में २० हजार करोड़ से अधिक का योगदान देता है। चिंता का विषय यह भी है कि सुनहरे सब्जबाग दिखाने वाले कई आभासी खेल एप लत, खेलने वाले आम लोगों के आर्थिक नुकसान और मनी लॉन्ड्रिंग को भी बढ़ावा देते हैं। यही वजह है कि निस्संदेह सरकार ने राजस्व की परवाह न करते हुए इन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर बड़ा जोखिम भी उठाया है। सवाल यह भी है, कि क्या केवल कानून से इस प्रवृत्ति पर अंकुश लग सकेगा ? अन्तरजाल का विस्तृत दायरा और विदेशी ऑनलाइन ऑपरेटर विधेयक के प्रमुख उद्देश्यों को विफल करने की कोशिश कर सकते हैं। यह नितांत अपेक्षित है, कि वित्तीय प्रणालियों की अखंडता के साथ-साथ राष्ट्र की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा होनी चाहिए। माना जा रहा है कि इस कानून को बनाने की जरूरत संभवतः ६ हजार करोड़ ₹ वाले महादेव आभासी सट्टेबाजी घोटाले के बाद महसूस की गई।
भारत सरकार का यह कदम इसलिए भी जरूरी है कि इस उद्योग का आँकड़ा कई विसंगतियों के साथ कई हजार करोड़ तक पहुंच गया है। विदेशी कंपनियाँ भी इस क्षेत्र में सक्रिय होकर भारतीय युवाओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दे रही हैं। इन पर जीतने के लालच में फंसकर युवा उज्ज्वल भविष्य को दांव पर लगा रहे हैं। यह प्रवृत्ति केवल व्यक्तिगत जीवन नहीं, बल्कि राष्ट्र की प्रगति में भी बाधक है, क्योंकि जिन युवाओं को शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए, वे अपना समय और ऊर्जा इन आभासी खेलों में गवां रहे हैं। आज जरूरत है कि इस समस्या को केवल कानूनी दायरे में ही नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर भी गंभीरता से लिया जाए। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को समय पर समझाएं, उनका मार्गदर्शन करें और उन्हें सकारात्मक गतिविधियों की ओर प्रेरित करें। समाज को भी मिलकर यह संकल्प लेना होगा कि मनोरंजन के नाम पर फैल रहे इस जुए की घातक एवं विध्वंसक संस्कृति को बढ़ावा न दिया जाए।
सख्त नियमन और इसे भारी कराधान के अधीन लाना एक व्यावहारिक समाधान होगा, साथ ही पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर देकर उपभोक्ताओं के लिए सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किए जाने की भी जरूरत है। इसमें गैर-कानूनी गतिविधियों में लिप्त मंचों पर जुर्माना भी लगाना एवं बड़े-बड़े दावे करने वाली मशहूर हस्तियों पर कार्रवाई भी होते हुए दिखनी चाहिए, तभी यह कानून कारगर एवं प्रभावी बन पाएगा।