डॉ. मीना श्रीवास्तव
ठाणे (महाराष्ट्र)
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इन दिनों हम गणपति के उत्सव का आनंद मेला मना रहे हैं। अच्छे- खासे दस दिनों तक बाल गणेश के आगमन का यह उत्सव हम बड़े ही लाड़, प्यार, अनुराग और धूम-धाम से मनाते हैं। क्या रौनक, क्या भक्ति गीत, क्या मोदक और लड्डू खिलाए जाते हैं उन्हें सुबह-शाम! लक्ष्य बस एक ही है- बुद्धि के देवता गजानन को प्रसन्न करना। उनके समक्ष एक ही प्रार्थना होती है, सद्बुद्धि का सदुपयोग करते हुए जग में जो भी मंगल है, वह हमारे जीवन में प्रवेश कर उसे समृद्धि प्रदान करें। हमें पूर्ण विश्वास है ६४ कलाओं के दाता गणेश जी यह वरदान देकर हमें अनुग्रहित करेंगे! हम जानते हैं, कि हमारा परम प्रिय गजवदन प्रत्यक्ष बुद्धि का देव है, परन्तु एक वक्त उसे लेखनिक होना पड़ा। इसका अर्थ यह हुआ कि इस बुद्धिजीवी को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा निर्देशित पटकथा (स्क्रिप्ट) को प्राचीन पद्धति से, संभवतः ताड़ पत्र पर लिखना पड़ा था। समग्र देव- देवताओं द्वारा अग्रमानांकित गणेश को यह करने के लिए बाध्य करने वाले कोई और नहीं, बल्कि महर्षि वेद व्यास ही थे। वैसे भी ऋषियों का अनुरोध देवताओं के लिए आदेश ही होता था।
हुआ यूँ, कि महर्षि वेद व्यास अपने समग्र जीवन के मधुर-कटु अनुभवों को महाकाव्य के रूप में रचना चाहते थे। उन्होंने उसका नाम ‘जय संहिता’ रखा। (हालाँकि, ग्रंथ के पूर्ण होने के बाद नाम ‘महाभारत’ कर दिया गया।) जब वेद व्यास ने इतने अति विस्तृत महाकाव्य रचने का बीड़ा उठाया, तो उन्हें अपनी सीमित क्षमता का एहसास हुआ। वे सोचने लगे, “मैं सोचते-सोचते एक श्लोक लिखूँगा! फिर दूसरा श्लोक… हे भगवन! अगर मैंने अपनी सारी ऊर्जा लिखने में ही लगा दी, तो अगला श्लोक लिखने की शक्ति कहाँ से लाऊँगा ?” ऐसी दुविधा में फंसे व्यास मुनि ब्रह्मा जी से प्रार्थना करने लगे, “हे सृष्टिकर्ता, क्या कोई ऐसा है जो मेरे श्लोकों का उच्चारण करने के तुरंत बाद उन्हें लिख सके ? कृपया मेरे महाकाव्य को पूर्ण करने के लिए किसी कुशल लेखनिक की व्यवस्था करें।” अब ब्रह्मा, जिन्हें वेद व्यास की बुद्धिमत्ता का पूरा अंदाज़ा था, सोच में पड़ गए। उनके पास सभी देवताओं का बायोडाटा था ही। उन्होंने वेद व्यास को आदेश दिया, “मुझे विश्वास है कि कैलाश पर्वत पर बसे शिव और पार्वती के पुत्र गणेश आपका कार्य सम्पन्न करेंगे। आप उनसे अनुरोध करें।”
ब्रह्मदेव की आज्ञा अनुसार व्यास मुनि ने गजानन की आराधना प्रारम्भ की। तपस्या से प्रसन्न श्री गणेश ने प्रकट होकर उन्हें शुभाशीर्वाद दिए। तब महर्षि व्यास ने श्री गणेश से अपनी इच्छा व्यक्त की। व्यास की यह प्रार्थना सुनकर गणेश ने उनके समक्ष एक शर्त रखी, “जब मैं लिखने बैठूँ, तो मैं चाहता हूँ कि आप जो भी बताएं, वह बिना किसी रूकावट के बताएं, उसमें एकरूपता हो। मैं बीच में कोई विराम नहीं लेना चाहता। अन्यथा, मेरी एकाग्रता भंग हो जाएगी और फिर मैं चला वापस कैलाश को!” बड़े प्रयासों से जिस उद्दिष्ट को साध्य किया था, उस महा लेखनिक की शर्त को स्वीकार करने के अलावा व्यास जी के पास कोई विकल्प नहीं था। अब शर्त रखने की बारी वेद व्यास की थी। उन्होंने कहा, “हे गणेश जी! मेरी भी आपसे एक शर्त है, कि आप श्लोक को पूरी तरह समझे बिना न लिखें, अर्थात श्लोक का अर्थ पूरी तरह समझ लेने के बाद ही लिखें।” (मित्रों, देखिए, आजकल के विद्यार्थियों को बिना दिमाग लगाए नोट्स लेने की आदत है। उनके लिए यह कितना प्राचीन उपाय है।) गणेश जी द्वारा रखी गई यह शर्त स्वीकार करने के बाद व्यास जी के श्लोकों का पाठ और गणेश जी का लेखन कार्य बड़ी तेजी से शुरू हो गया। व्यास जी को जल्द ही अनुभूति हो गई कि गणेश जी को सारे श्लोक समझने के लिए कुछ ही क्षण काफ़ी हैं। अब व्यास जी ने अपने श्लोकों को और जटिल बनाना शुरू कर दिया। बीच-बीच में वे गणेश जी के सामने पहेलियाँ भी रखते थे। गणेश जी को ये बातें समझने में थोड़ा ज़्यादा समय लगता था और उस दौरान व्यास जी अगले श्लोकों पर मनन करते थे। इस प्रकार १ लाख से भी अधिक श्लोकों वाले ‘महाभारत’ नामक महाकाव्य की रचना हुई। इसी लिए कहा जाता है कि जो महाभारत में है, वही और सिर्फ वही इस संसार में भी है। क्यों भला ? वेद व्यास के विराट ज्ञान भंडार, बुद्धिमत्ता, प्रज्ञा और अनुभवों के कथन को ज्ञान के दाता गणेश ने उनकी कलम के रूप में आशीर्वाद जो दिया था।
मित्रों, आज भी उत्तराखंड (भारत) राज्य में बद्रीनाथ शहर के पास माणा गाँव में गणेश गुफा और व्यास गुफा स्थित हैं। माना जाता है कि व्यास गुफा वही है, जहाँ महर्षि व्यास ने ‘महाभारत’ की रचना की थी। इसके पास ही गणेश गुफा है, जहाँ भगवान गणेश ने व्यास के कहने पर महाकाव्य ‘महाभारत’ का लेखन किया था।
विघ्नहर्ता श्री गजानन और महाकवि महर्षि वेद व्यास दोनों के चरणों में नम्रतापूर्वक नमन करती हूँ।