डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
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‘गणपति बप्पा मोरया…. मंगल मूर्ति मोरया’…. ‘मुकाबला मुकाबला तेरे भक्तजनों का मुकाबला’ गीत डीजे की इतनी तेज आवाज में बज रहा था, कि धरती में कंपन होने लगा था। उस पर बैंड और नगाड़ों की आवाज अलग…! उम्रदराज वाले लोगों की चाल तेज हो गई थी, वह उस आवाज से दूर हो जाना चाहते थे। गली के कुत्ते कू… कू… कू…कू… की आवाज करते हुए इधर-उधर भाग रहे थे। इन सबसे बेखबर लोग झुंड में नाचते-कूदते, ‘बप्पा की जय’… ‘बप्पा की जय’ का उद्घोष करते नदी की ओर जा रहे थे।
पुल के ऊपर पहुंचते ही डीजे बंद हो गया और ‘गणपति बप्पा की जय…’ ‘गणपति बप्पा की जय…’ का शोर आसमान छूने लगा। पुल के नीचे कई मूर्तियाँ गंदे पानी में पड़ी थीं, किसी की सूंड टूटी हुई थी तो किसी के हाथ-पाँव टूटे हुए थे। उस झुंड ने जैसे ही गणेश जी की मूर्ति को नदी में प्रवाहित करने के लिए उठाया, मूर्ति से आवाज आई, “…. भाइयों ! प्रदूषण से मुझे मुक्त करो !…. ध्वनि प्रदूषण से मुझे बचाया, तो अब जल प्रदूषण में मुझे फेंक रहे हो…!”
इसी के साथ मूर्ति अंतर्धान हो गई।