प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
**************************************************
एक मन तू कहाँ-कहाँ लगाएगा,
भटकेगा भव में या प्रभु को पाएगा।
भजन, भोज, प्रेम प्रभु से कर अकेले में,
तभी इनकी रक्षा कर पाएगा।
प्रभु का कोई एक रूप अपना बना ले,
तुलसी-सा प्रेम कर पाएगा।
एक मन तू कहाँ-कहाँ…॥
संसार नेत्रों से प्रभु दिख न पाएंगे,
हृदय नेत्र उन्हें देख पाएगा।
नित प्रेम से पुकार नाम प्रभु प्यारे का,
सबमें उनका दर्शन ही पाएगा।
एक मन तू कहाँ-कहाँ…॥
सत्संग से मन में प्रभु प्रेम प्यास जागे,
प्रभु नाम जीवन बन पाएगा।
प्रभु दासों का दास बन जा जगत में,
शीघ्र प्रभु को प्रसन्न पाएगा।
एक मन तू कहाँ-कहाँ…॥
तन चिंता छोड़, मन दे दे प्रभु को,
चैन से शरीर छूट पाएगा।
एक मन तू कहाँ-कहाँ लगाएगा।
भटकेगा भव में या प्रभु को पाएगा…॥