बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
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उसे लगता था-
रिश्ते कृत्रिम हो गए,
वास्तविकता नहीं रही
एक-दूसरे से संबंध रखने की,
मजबूरी-सी जैसे बन गई।
फिर भी उसने सोचा,
क्यों ना परख लूं ?
रिश्तों की बनावट आज,
क्या सभी कहते हैं
वो सही है ?
या में कहता हूँ वो सही है ?
कुछ दिन के लिए,
नाटक किया उसने
बीमार होने का,
ना गया बहन से मिलने
और ना माँ के पास,
ना पिता से हुई बात
और ना भाई से ताल्लुकात।
त्यौरियाँ चढ़ गई परिवार की,
निकालनी शुरू की गालियाँ सभी ने
भूल गए सब कि वो बीमार है,
हाल-चाल पूछने जाएँ
किश्तें बंद हुई सबकी,
रिश्ते भूल गए सब।
अभी तक वो,
बहुत अच्छा लगता था
आज बहुत खराब,
क्योंकि बिस्तर में पड़ा था।
माँ-बाप भी भूल गए,
कि बेटे ने अब तक किया
वो कहाँ गया ?
आज किश्त नहीं मिली,
तो उसे बदनाम किया।
बता दें साहब वो कहावतें,
अब बदल गई
कि “कुछ रिश्ते नि:स्वार्थ होते हैं।”
जब से मैंने जानी,
माँ-बाप के मुँह से गालियाँ…
तो पता चला।
रिश्ते स्वार्थी नहीं,
निरे स्वार्थी होते हैं॥