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मैया का आगमन

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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कल गाँव से नाशिक की ओर आते हुए एक दिलचस्प और भक्तिभरा नजारा सामने आया। २१ सितम्बर से नवरात्री उत्सव शुरू हुआ है, तो सम्पूर्ण भारतवर्ष में माँ भगवती की प्रतिमा स्थापित करके ९ दिन भगवती के विविध रूपों का जागरण होगा और रास गरबा, डांडिया नाच के आयोजन से सारा देश झूम उठेगा।
कल गाँव से लौट रहा था। यहाँ उत्तर महाराष्ट्र के कलवन तहसील स्थित सहयाद्रि पर्वत श्रृंखला के सप्तश्रृंग पर्वत पर भगवती सप्तश्रृंगी का शक्तिपीठ है, जिसमें से गाँव-गाँव, शहर-शहर प्रज्वलित ज्योति ले जाने का सिलसिला चल रहा था। नजारा बड़ा दिलचस्प था। माताजी के सानिध्य में जलते मुख्य ज्योतिपुंज से अपनी-अपनी मशालनुमा ज्योत जलाकर विभिन्न स्थानों से आए लोग ज्योति लिए जा रहे थे। ज्योति की जलती मशाल उठाकर एक युवा जितनी संभव हो, उतनी दौड़ लगाता। वह जैसे ही रुकने को होता, दूसरा हाथ से मशाल लेकर नयी दौड़ लगाता, फिर तीसरा, फिर चौथा युवा…. इस प्रकार दौड़ की श्रृंखला लगाकर ज्योतिया गाँव-गाँव वहन की जा रही थी और यह सैकड़ों मीलों का प्रवास युवाशक्ति पैदल और नंगे पैर दौड़कर किए जा रही थी। माताजी की कृति भक्ति की इससे बेहतर दूसरी कौन-सी मिसाल हो सकती है! बारिश का मौसम, सड़कों के आसपास फैली सघन हरियाली भरे खेत, पहाड़ों की मनोरम श्रृंखला, सप्तश्रृंग गढ़ को छूकर आती मस्तमौला पवन और साथ में भक्तों के मुखारविन्द से माँ के जयकारा की ललकार… वाह, कैसा भक्तिभरा और रंगारंग माहौल है। दौड़ते वक्त फड़फड़ाती ज्योति को कितनी संजीदगी से संभाला जा रहा है। ईंधन के स्रोत निरंतर बनाए रखने की व्यवस्था कितनी सुचारु है। ज्योति लेकर युवक भागे जा रहे हैं, ज्वालाओं के फड़फड़ाने की स्पष्ट ध्वनियाँ मुखर हो रही है। एक पवित्र खुशबू पूरे माहौल में भरती जा रही है। सप्तश्रृंग गढ़ से ज्योति परजकर लाना मतलब स्वयं ज्योतिस्वरूपा माताजी क़ो लाना है। इसलिए ज्योति लेकर युवा जैसे ही अपने गाँवों में पहुँच रहे हैं, बड़े जोश-खरोश से उनका और माताजी का स्वागत ढोल-ढमाके बजाकर किया जा रहा है। नवरात्री की पहली कड़ी में माताजी की स्थापना तक ये सिलसिला निरंतर जारी रहेगा।
कहा जाता है कि यहाँ का खानदेश प्रान्त माताजी के मायके का इलाका है और दक्खन प्रान्त ससुराल, इसलिए मायके के लोगों में सप्तश्रृंगी माँ के प्रति कमाल की आस्था है। ज्योति स्वरुप जैसे माँ अपने पीहर प्रान्त के हर गाँव, मोहल्ला और घर-घर में जाकर ९ दिन तक विराजमान रहती है, उनमें से किसी एक दिन माँ का पूजन कर घर-घर में चक्रपूजा की जाती है, माताजी का जागरण होता है, रास, डांडिया और गरबा खेलकर हर्षोल्लास मनाया जाता है। इस चैतन्यमयी उत्सव में भारत का सारा जनमानस डूब जाएगा और डूबता ही चला जाएगा।
यहाँ महाराष्ट्र में कोल्हापुर निवासिनी महालक्ष्मी, तुलजा भवानी माँ एवं माहुर गढ़ स्थित रेणुका माता ये ३ पूर्ण शक्तिपीठ है, तो सप्तश्रृंग निवासिनी अम्बिका माता का आधा शक्तिपीठ है। इस प्रकार महाराष्ट्र में कुल साढ़े ३ शक्तिपीठ हैं।

मित्रों, हम जिस धरा पर निवास करते हैं वह स्वयं माँ भगवती का स्वरुप है, इसलिए हम पृथ्वी क़ो पृथ्वीमाता कहते हैं। हमारी यह पृथ्वीमाता हम सबके लिए क्या-क्या नहीं सहती है। हमारे लिए अन्न का प्रयोजन, पानी की कलकलाती सरिताएं बहाती है. हमारी सासों का स्पंदन चलाती है। हम सबके लिए प्रकृति का श्रृंगार करती है। अलग-अलग ऋतुएं निर्माण कर हमें रिझाती है। हमारे लिए अपना सब-कुछ लुटाती है। असल मायने में पृथ्वी माता हमारी महामाता है, तो आइए इस महामाता की हम हिफाज़त करें, उसके वनों का श्रृंगार लौटा कर, उसकी नदियों क़ो शुद्ध करके अबके नवरात्री हम पृथ्वी माँ की पूजा बाँधे। माताजी की नवरात्री का यही परम पवित्र सन्देश है।

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।