दिल्ली
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‘अन्त्योदय दिवस’ (२५ सितंबर) विशेष…
भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक चेतना में सदैव यह विचार रहा है कि समाज की वास्तविक उन्नति तभी संभव है, जब समाज का सबसे अंतिम व्यक्ति-वह व्यक्ति जो सबसे अधिक उपेक्षित, वंचित और अभावग्रस्त है, उसके जीवन में भी सुख, सम्मान और समृद्धि का प्रकाश पहुँचे। यही विचारधारा ‘अंत्योदय’ के रूप में प्रकट हुई। अंत्योदय केवल एक नारा या कार्यक्रम नहीं, बल्कि समाज-जीवन के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत है। ‘अंत्योदय दिवस’ इसी दर्शन की याद दिलाने और उसे व्यवहार में उतारने का अवसर है। यह दिवस हर वर्ष २५ सितम्बर को मनाया जाता है, क्योंकि यही पं. दीनदयाल उपाध्याय की जन्मतिथि है। पं. उपाध्याय ने अंत्योदय के सिद्धांत को भारतीय राजनीति और समाज के केन्द्र में स्थापित किया। उन्होंने कहा था कि राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्ति नहीं, बल्कि उस सत्ता का उपयोग समाज के अंतिम व्यक्ति के जीवन को बेहतर बनाने के लिए होना चाहिए।
आज गाँव, गरीब और स्वराज में दीनदयाल उपाध्याय की ही सोच आगे बढ़ रही है कि आज भारत में लोकतंत्र की चाल, चेहरा और चरित्र बदला जा रहा है तथा आस्थाओं की राजनीति को बल देते हुए जाति-धर्म का उन्माद नियंत्रित किया जा रहा है। महात्मा गांधी, आम्बेडकर और दीनदयाल उपाध्याय आज इसलिए भारत निर्माण की नई व्याख्याओं में सबसे आगे हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ एवं सर्वधर्म सद्भाव का विचार आज सर्वाधिक बलशाली बन कर दुनिया के लिए आदर्श बन गया है। मूल उद्देश्य हमें यह स्मरण कराना है कि लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ तभी साकार होता है, जब समाज का अंतिम व्यक्ति भी राष्ट्रीय विकास यात्रा में शामिल हो सके। यह दिवस हमें यह प्रेरणा देता है कि योजनाएँ और नीतियाँ केवल कागज़ों तक सीमित न रहें, बल्कि उनका लाभ उस व्यक्ति तक पहुँचे जो वर्षों से अभाव का शिकार है। आज भारत नए शिखरों की ओर अग्रसर है। आर्थिक विकास, तकनीकी प्रगति और वैश्विक पहचान निरंतर बढ़ रही है, लेकिन यदि यह प्रगति समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति तक नहीं पहुँचती, तो यह विकास अधूरा है। इसलिए अंत्योदय दिवस हमें विकास के मानवीय आयाम की याद दिलाता है। यह नागरिकों और नीति निर्माताओं को वंचितों का समर्थन करने की जिम्मेदारी का अहसास कराता है। सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है, और पूरे देश में समावेशी विकास को प्रोत्साहित करता है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म २५ सितम्बर १९१६ को हुआ था। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक और प्रखर चिंतक, दार्शनिक तथा समाज सुधारक थे। उनका सबसे बड़ा योगदान था-एकात्म मानववाद और अंत्योदय का दर्शन। एकात्म मानववाद का अर्थ था कि मनुष्य को केवल आर्थिक इकाई न माना जाए, बल्कि उसके जीवन के सभी आयामों-शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक का संतुलित विकास हो। उनका ‘एकात्म मानववाद’ का दर्शन व्यक्तिगत और सामूहिक कल्याण, सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता तथा आत्मनिर्भरता पर केंद्रित था। अंत्योदय का अर्थ था विकास की कसौटी पर यह देखना कि समाज में सबसे अंतिम व्यक्ति का जीवन कितना सुधर रहा है। दीनदयाल जी का यह दर्शन महात्मा गांधी की ‘अंतिम जन’ की अवधारणा से भी जुड़ा है।
आज जब देश एवं दुनिया में संघर्ष की स्थितियाँ बनी हुई हैं, हर कोई विकास की दौड़ में स्वयं को शामिल करने के लिए लड़ने की मुद्रा में है, कहीं सम्प्रदाय के नाम पर तो कहीं जातियता के नाम पर, कहीं अधिकारों के नाम पर तो कहीं भाषा के नाम पर संघर्ष हो रहे हैं, ऐसे जटिल दौर में भी अभाव, उपेक्षा एवं संघर्षरत लोगों के लिए ‘अंत्योदय’ एवं एकात्म मानववाद ही सबसे माकूल हथियार है।
‘अंत्योदय’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘अंतिम व्यक्ति का उदय।’ इसका व्यावहारिक अर्थ है कि गरीब को जीवन की बुनियादी आवश्यकताएँ मिलें, किसान, श्रमिक, दलित, आदिवासी और वंचित वर्ग की समस्याओं का समाधान हो, समाज में कोई भी उपेक्षित या निराश्रित न रहे, आर्थिक असमानता घटे एवं गरीबी का संबोधन खत्म हो, ताकि सभी को समान अवसर मिलें। यह केवल आर्थिक उत्थान तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, मानवीय गरिमा और आत्मनिर्भरता की स्थापना का भी संदेश है। आज भारत गरीबमुक्ति की ओर अग्रसर होकर इसी विचार एवं दर्शन को मजबूती दे रहा है। पं. उपाध्याय का जीवन तपस्या और सादगी का प्रतीक था। वे स्वयं किसी प्रकार की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से दूर थे, लेकिन समाज के लिए समर्पित थे। आज जब भारत ‘सशक्त भारत’ और ‘नए भारत’ के निर्माण की दिशा में बढ़ रहा है, तब अंत्योदय का महत्व और भी बढ़ जाता है। अंत्योदय यह मांग करता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सुविधाएँ हर गरीब और वंचित तक पहुँचें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पं. उपाध्याय के विचारों को आधार बनाकर ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ का मंत्र दिया है। यह मंत्र अंत्योदय की ही आधुनिक व्याख्या है।
वर्तमान समय में अंत्योदय का दर्शन और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वैश्वीकरण और बाजारवाद की दौड़ में गरीब और उपेक्षित वर्ग अक्सर पीछे छूट जाता है। केवल अमीर और सशक्त वर्ग ही विकास का लाभ उठा पाते हैं। यदि समाज का अंतिम व्यक्ति भूखा सोता है, तो हमारी प्रगति अधूरी है। अंत्योदय इन सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। यह हमें याद दिलाता है कि सच्चा विकास वही है, जिसमें हर कोई भागीदार बने।
अंत्योदय दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि राष्ट्र की शक्ति का वास्तविक स्रोत वह अंतिम व्यक्ति है, जो आज भी अभावों में जी रहा है। यदि उसका जीवन सुधरता है, तभी भारत वास्तव में समृद्ध और सशक्त बन सकता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का अंत्योदय दर्शन आज भी हमारे लिए पथ-प्रदर्शक है। यह केवल राजनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि मानवीयता का धर्म है। हमें यह संकल्प लेना होगा कि किसी भी योजना, किसी भी नीति या किसी भी प्रयास का केन्द्र सदैव समाज का अंतिम व्यक्ति होगा।