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कोरी पुस्तक हूँ…

उर्मिला कुमारी ‘साईप्रीत’
कटनी (मध्यप्रदेश )
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एक कोरी पुस्तक हूँ मैं, निश्छल साफ सुथरी हूँ मैं…,
अनेक दर्द को समेटकर, खुद को संभालती हूँ मैं।
हाँ, एक पुस्तक हूँ मैं…

जीवन में संघर्ष करते हुए, इस पथ पर बढ़ती हूँ मैं…,
जीवन के अपने तमाम, पन्नों को छिपाती फिरती हूँ मैं।
हाँ, एक पुस्तक हूँ मैं…।

रंग-बिरंगी सी हसीन वादियों में, खुद को ढूंढती फिरती हूँ मैं…,
कुछ रंगों को चुराकर फिर, स्वयं धारण करती हूँ मैं…।
हाँ, एक पुस्तक हूँ मैं…

अपने और परायों से भी अच्छा सम्बंध रखती हूँ मैं…,
सबको अपना ही सगा समझती फिरती भी हूँ मैं।
हाँ, एक पुस्तक हूँ मैं…

सुख-दु:ख में कभी सबके बहुत काम आती हूँ मैं…,
पर-सेवा भाव से एक मीठी मुस्कान बन जाती हूँ मैं।
हाँ, एक पुस्तक हूँ मैं…

वीरान पड़े घर हों या दिल हो, रौनक बन जाती हूँ मैं…,
उम्मीद की एक किरण बनकर, रौशनी वहाँ बन जाती हूँ मैं।
हाँ, एक पुस्तक हूँ मैं…

गहरे राज छिपाकर, विश्वासी सहारा बन जाती हूँ मैं…,
समंदर में छिपा मोती भी एक दिन ढ़ूंढ लाती हूँ मैं।
हाँ, एक पुस्तक हूँ मैं…

दूजे को ज्ञान विज्ञान की सैर करवाकर ज्ञान-उपदेश देती हूँ मैं…,
जीवन में उनको परिवर्तन की सीख दे जाती हूँ मैं।
हाँ, एक पुस्तक हूँ मैं…॥