डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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दशहरा विशेष….
अपराध बोध माना हियतल,
दुष्काम काम घायल था मैं
अभिशप्त अहं आज्ञापालक,
गोलोक द्वार राजित था मैं।
सनक सनन्दक महर्षि कोप,
त्रिजन्म असुर था मैं शापित
आसुरी गुणी भूले सद्गुण,
बस चतुर्युगी जलता हूँ मैं।
मैं महातपस्वी शौर्यवीर,
त्रिलोक जेता दुर्जयी था मैं
बस सत्ता पद अहंकार अनल,
अत्याचार निर्दयी था मैं।
पुरुषार्थ सबल साधक ईश्वर,
दशानन शिव मैं था अर्पित
मैं शक्ति उपासक ब्रह्म भक्त,
खुद विष्णु हाथ मरता था मैं।
मेरी क्या गलती बोल मनुज,
कर्त्तव्य निष्ठ पालक था मैं
हरि विरत मोह फँस आहत
प्रह्लाद तनय घातक था मैं।
प्रिय बहन होलिका दहन दुखी,
सूर्पनखा घाव लखि था आहत
बस दुस्साहस सिय हरण घृणित,
अनजाने फल मरता हूँ मैं।
सत्ता पद यौवन प्रभुत्व लब्ध,
अविवेक कुपथ वाहक था मैं
जहाँ एक-एक भी विध्वंसक,
वहाँ चतुर्दोष नायक था मैं।
फिर मृत्यु वज़ह हो बहन पुत्र,
यहाँ कौन करे मरण स्वागत
दे जेल बहन वसुदेव मीत,
श्रीकृष्ण हाथ मरता था मैं।
बस करो जलाना पुतले को,
अब राष्ट्रद्रोही बहु रावण है
सिसकी भरती धरती असुरों,
कामी खल हिंसक पावन है।
लूट, गबन, घूस, भ्रष्टाचारी,
छल, काम, क्रोध, मद भू आहत
किसकी जय हो किस पर विजय,
क्या अब भी अपराधी रावण है ?
अब कहाँ मोल है कलि रिश्तों,
अपनापन बन्धुत्व देखता मैं,
चहुँ दिशा दहन खल रावण का
लखि विजय पर्व मुस्काता मैं।
बस इंच मात्र भूखंड धरा,
सहोदर आपस लड़ मर घातक।
कहाँ प्रेम शान्ति सद्भाव सरस,
असंवेद दशा लजाता मैं॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥