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शारदीय रात

बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
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शारदीय रातों में,
दूधिया चाँदनी फैलती है।

मैं शरद गीत गाती हुई,
कब केसरिया चाँदनी में
बहने लगती हूँ
नहीं जानती हूँ मैं।

मेरा मन चाँद से
बातें करने लग जाता है,
पर आजकल चाँद ने
अमृत भरी नहीं,
बल्कि विष भरी बातें मुझसे की है।

शारदीय चाँद का सौंदर्य
माँ को भी झनझना देता है,
जाता है पलकों पर उतर
एक कोमल आग्रह लिए।

उस चमकीले उजास में भूल जाती हूँ मैं
उसकी विषैली बातें,
और वह रेशमी स्मृतियों के साथ
लिखने लगता है।

मेरे साथ हर अधूरे रिश्ते की कहानी,
शारदीय चाँद
जीवन की रुपहली राह पर,
विश्वास बनकर
मेरे साथ चलता रहा।

मैं विचरती रही आकाशगंगा में,
बादल गड़गड़ाहट से तालियाँ बजाकर
गवाह बन जाते हैं।

तुम भी मेरे विचारों को
पतंग बनाकर उडा़या करते हो,
पर शारदीय चाँद करता है
नव ऊर्जा का संचार।

सौंदर्य का आलोक
व रजत-सी झरती धार,
ये संयोग धरती पर
हृदय में समा रहा है,,

मैं चाहती हूँ,
हर मन में नव आश जाग जाए।
व बयार भी,
करने लग जाए संवाद॥